मंगलवार, 10 नवंबर 2020

आहुति या स्वाहा ?


एक नेता जी थे, उनके साथ हमेशा सौ दो सौ लोग नारा लगाते हुए घूमते थे, चुनाव का दिन नजदीक आते जा रहा था और रोज सौ दो सौ लोग जुड़ते जा रहे थे, चुनाव प्रचार के अंतिम दिन नेता जी ने भोज रखा,  उसमें अनुमान था कि चार हजार तक लोग जुट जायेंगे, लेकिन नियत समय पर लगभग दस हजार लोग जुट गए,  नेता जी को अपने समर्थकों के इस अपार भीड़ को देख के ऐसी खुशी हुई मानो धोबी को अपने खोये हुए गधे के मिल जाने पर होती है.

नेता जी हाथ जोड़े , शीश नवाये अपने समर्थकों के आगे नत्मस्तक थे, और भविष्य को सोचते हुए कर्ज लेकर बाकी 6 हजार लोगों के खाने का इंतजाम किया गया.. और लोगों ने वह शाम मुर्गा और सुरा पान में डूब कर नेता जी जिंदाबाद से गुंजायमान रखा...  जिंदाबाद की गूंज में नेता जी को सदन के टेबल पर की थाप सुनाई दे रही थी... 

खैर भोज खत्म हुआ, और आचार संहिता आदि को ध्यान में रखते हुए बाकी का समय शांति से चल रहा था.. नेता जी कुर्ता वगैरह के नाप के लिए दर्जी को फोन कर रहे थे, और दो चार हलवाईयो को भी अग्रिम  ऑर्डर दे दिये..

चुनाव शांति पूर्ण सम्पन्न हो रहा था, लोग आते और नेता जी से कहते कि फलाने बूथ पर गया था, सिर्फ आपको ही वोट पड़ रहा है.. और नेता जी से अगले बूथ तक जाने का किराया और कुछ वोटों के हिसाब से नोट लेके अगले बूथ की तरफ चले जा रहे थे.. नेता जी की आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं थी ,लेकिन लोकतंत्र में आहुति देने के लिए और भविष्य को सोचते हुए उन्होंने अपने सभी जान पहचान वालों से किसी न किसी बहाने इतनी रकम रख ली थी की शाम तक आराम से अलग अलग बूथों के बारे मे खबर देने वालों को बख्शीश दे सके.. 


चुनाव बीतने के अगले तीन चार दिन तक नेता जी की घर पर सौ दो सौ लोगों का मजमा लगा रहता और अलग अलग गणित लगा कर नेता जी को जीत का आश्वासन दिया जाता रहता... साथ ही आने वाले समय में नेता जी कौन सी गाड़ी लें, क्या पहनें के साथ साथ घर में कौन सा टाइल्स आदि पर भी बहस चलती रही.. 

लोकतन्त्र चाय नाश्ता और मुर्गा खा कर मजबूत हो रहा था,  
अब वो घड़ी आ गयी जिसके लिए नेता जी ने, अपनी गाड़ी, जमीन और घड़ी तक गिरवी रख छोड़ी थी... 
सुबह का समय था, नेता जी ने बीस लीटर दूध मंगा लिया कि चाय बनाने में कोई दिक्कत ना हो..  वो बाहर निकल कर लोगों के लिए कुछ कुर्सियां और चारपाई लगवा लिए, और अपना सोफा भी बाहर निकलवा के उस पर बैठ गए..

समर्थकों का इंतजार करने लगे, समय थमा सा था लेकिन इतना भी नहीं जैसे जैसे समय बीतता उनके समर्थकों की अनुपस्थिति उन्हें खटक रही थी, कि रोज तो सुबह आ जाते थे और आज जब शुभ घड़ी आ गयी है तो कहाँ मर गए हैं सब..  लेकिन चूंकि नेता को संयम रखना होता है ,यह सोच कर अंदर टीवी पर चुनाव का गणित देखने लगे... 
समय बढ़ रहा था परिणाम भी आते जा रहा था, उनके क्षेत्र में कौन बढ़त बनाये है और कौन दो नंबर पर है दिख जा रहा था अक्सर टीवी पर.. 

लेकिन जिस तरह से एक फेल हो गया विधार्थी बार बार रिजल्ट चेक करता है, उसी तन्मयता और व्यग्रता से वे अलग अलग चैनल  बदल रहे थे और अपना नाम देखना चाह रहे थे .. 

इसी बीच वो बाहर झाँक कर देख चुके थे ,समर्थकों से भरा उनका बैठक खाली पड़ा था.. उनका दिल बैठ रहा था, तभी उन्हें अपने क्षेत्र का पूर्ण परिणाम दिखाई दिया, ऊपर से देखते हुए वो नीचे की तरफ देखते गए, उन्हें अंत में अपना नाम दिखाई दिया, 
राम बिलास मिश्रा कुल वोट 15..
नेता जी बौखलाए ,चिल्लाये,और मूर्छित होकर गिर पड़े,  तभी अंदर से कोई बाहर निकल कर आया, नेता जी के मुँह पर पानी के छींटे दिये गए, नेता जी होश में आये, वोट के लिए अलग अलग शहरों से घर में आये संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों को चिल्ला कर बुलाये  और 18 से अधिक उम्र वाले सदस्यों को गिना, कुल संख्या थी बीस .. नेता जी बाहर के समर्थकों को माफ कर चुके थे... 

नेता जी लोकतन्त्र में आहुति देते देते, सब कुछ स्वाहा कर बैठे थे,  लोकतन्त्र में समर्थकों का मर्म, धर्म और कर्म वो समझ चुके थे, बाहर हलवाई आ चुका था, और दूर जाते हुए जुलूस में उन्हें जिंदाबाद वाली आवाजें सुनी हुई लग रही थीं, बस आज नाम उनका नहीं था उन नारों में... 

लोकतन्त्र अपनी ऊंचाई पर था, नेता जी लोकतंत्र के अपने हिसाब और समर्थकों का चेहरा याद करने की कोशिश कर रहे थे... 

इति राजनीति : 

बुधवार, 30 सितंबर 2020

समन्दर, जहाज और लहर

समंदर 

चीखता है, 
हुँकार भरता है, 
थपेड़े देता है 
और सहता है, 

जहाज 

चीर देता है,
समन्दर को, 
उसकी गहराई को, 
समन्दर के दम्भ को, 

लहर 

उठने के घमंड में,
हर बार लौट जाता है, 
टकराकर किनारे से,
शोर मचाते हुए शांत पड़ जाता है

बस समंदर, जहाज और लहरों
का यही अनवरत युद्ध , 
समन्दर को उसके , 
समन्दर होने के एहसास 
को जिंदा रखने की मजबूती देता है.. 

सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिन्दी दिवस पर हैप्पी हिन्दी


जिस तरह फेसबुक ना हो तो जन्मदिन का ध्यान नहीं रहता वही हाल अलग- अलग दिवस का भी है,और हिन्दी दिवस भी इससे अलग नहीं ! हम अँग्रेजी से इतना ग्रस्त हो गए हैं कि हिन्दी हमारे लिए या तो मजबूरी है या फिर कमजोरी ! हम लोगों में से ज्यादातर लोग हिन्दी बोलते हैं , क्योंकि बहुत लोग अंग्रेजी समझ नहीं पाते , साथ ही साथ इंग्लिश कोट-पतलून की भाषा है ,जबकि हिन्दी धोती-कुरता की भाषा है !
हिन्दी भाषा का आलम ये है कि हमारे सामने आकर कोई थोड़ा सा आत्मविश्वास दिखा कर दो चार लाइन गलत इंग्लिश क्या बोल दे ,हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है ! और इस डर से कि 20 साल पढ़ा हुआ संज्ञा-सर्वनाम हमारा विशेषण ना बन जाये , इस डर से हम ओके ,यस ,नो या फिर या या या करने लग जाते हैं !
यही नहीं बदलाव का आलम ये है कि हिन्दी भाषी क्षेत्रों के शिक्षा पदाधिकारी हो या इन क्षेत्रों के भाषा विज्ञानी या फिर अध्यापक और प्रध्यापक उनमें भी गलत अँग्रेजी बोल के अंग्रेजीदाँ दिखने की कोशिश के लिए होड़ लगी रहती है ! और लिखने का आलम ये है कि एक पेज के हिन्दी में नोटिस में अधिकारियों के द्वारा 10 गलती तो सामान्य बात हो गयी है !
हिन्दी बोलिये या नहीं बोलिये , हिन्दी समझिए या नहीं लेकिन हिन्दी को श्रधांजलि देने का उपक्रम कम से कम वो लोग तो ना करें जो इस हिन्दी की रोटी खा रहे हों !
हिन्दी सिनेमा का ही हाल देख लें सबसे ज्यादा बेइज्जती वहाँ हिन्दी की ही होती है , करोड़ों लगा के करोड़ों कमाने का सिलसिला हिन्दी भाषा में ही चल रहा होता है, लेकिन ना वहाँ किसी साक्षात्कार में ना ही स्क्रिप्ट में ही हिन्दी का विशुद्ध रूप इस्तेमाल किया जाता है ! कम से कम देवनागरी और हिन्दी अगर आपकी रोजी रोटी है तो कम से कम उसके प्रति अपना प्रेम तो जरूर ही दिखाएं !
खैर तमाम दिवस की तरह आज का दिन भी कुछ गोष्ठियों और सम्मेलनों के माध्यम से पूर्ण हो जाएगा लेकिन हर बार की तरह इस बार भी हिंदी ठगी जाएगी !
और हाँ हिन्दी के लेखकों और लेखिकाओं तक में हिन्दी बोलना उनकी तौहीन मानी जाती रही है , ना विश्वास हो तो जहाँ भी पुस्तक मेले लगें वहाँ घूम आइये आपकी अपनी हिन्दी वहाँ किसी कोने में दुबकी और सहमी नज़र आ जायेगी !
विशेष कि आप सबको हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं !

बुधवार, 5 अगस्त 2020

श्री राम का दिन

आज से लगभग दस साल पहले मैं अपने एक सह पाठी दीपक के साथ लगभग एक महीने  फैजाबाद ( अब अयोध्या जिला) में था, और तब हर शाम को वहाँ से बुलेट से हम दोनों अयोध्या जाते थे और घाट पे जाते थे, वहाँ एक साधु थे जिनकी उम्र लगभग 90 वर्ष के करीब थी, उनके साथ घाट पर बैठ कर बात होती थी,  वो बताते थे कि बेटा मैं लगभग 10 साल का था तो यहाँ आ गया और तब से यहीं हूँ.. 
अक्सर उनसे धर्म पर तमाम बातें होती थी, उनका रोज यही कहना होता था कि कैसे भी राम लला  की उनकी जन्मभूमि पर मंदिर बन जाए तो यह जीवन सफल हो। वो वहीं बगल के मंदिर में रहते थे, दो तीन साल बाद हम लोग  गए तो पता लगा उनका देहांत हो गया और शायद उनका सपना अधूरा रह गया। आज का दिन उन जैसे तमाम लोगों के सपनों के लिए एक अच्छा दिन है.. जिनकी आँखे इस दिवस को बिना देखे ही चली गयीं। आज ऐसे तमाम लोग जिनकी आस्था राम में और सनातन धर्म में प्रगाढ़ हुई होगी। 

आपके और हमारे तमाम मतभेद हो सकते हैं, व्यक्ति के तौर पर मन भेद भी हो सकते हैं..राजनैतिक स्तर पर तनातनी जरूर हो सकती है, संविधान के नाम पर लड़ाई हो सकती है... अपने ज्ञान के स्तर पर बहस भी हो सकती है.. 

लेकिन जब आप किसी धर्म को मानते हैं, धारण  करते हैं, तो उसमें धर्मकार्य के साथ चलना ही शास्त्र संगत है .. धर्म की परिकल्पना विचारों से उपर है, धार्मिक तरीके से अगर अपने, जन्म, विवाह, मृत्यु आदि के समय आप पूजा पाठ करते हैं तो सिर्फ इस वजह से कि आप अपना विरोध कायम रखें, आज के दिन को खराब कर रहे हों, ये बहुत अच्छी बात नहीं है.. 

आपकी नाराजगी मोदी से हो सकती है, लेकिन श्री राम से नहीं होनी चाहिए.. कारण तमाम हो सकते हैं  , लेकिन उस  ईश्वर को आप कैसे नहीं मान सकते जिसके सामने प्रधानमंत्री साष्टांग हो जाता हो... प्रभु सब के तारन हार हैं, चाहे राजा या रंक.. 

जो यहाँ का हो और उसको ही किसी लुटेरे या किसी अन्य देश के आततायी से अपनी जगह लेने में  लगभग पाँच सौ वर्ष लग गए हों और तब वह दिन आखिर मे आया हो और तब आप अपने तर्कों से उस दिन के उत्सव को समझ नहीं पा  रहे हैं तो या तो आप को धर्म की शिक्षा कम प्राप्त है या फिर आप का तर्क आप पर भारी है... या फिर  उन तमाम बुरे लोगों की श्रेणी में आप अपने आपको  खड़े करने की कोशिश में हैं जो उस वक्त रहे होंगे जब आज से पांच सौ साल पहले श्री राम से उनकी जमीन छीन ली गयी होगी। 

पूजा किसी ने की हो, पार्टी कोई हो, शिलान्यास किसी ने किया हो, फायदा घाटा किसी का हुआ हो या होगा .. भूमिपुजन राष्ट्र के मुखिया ने शास्त्रसमत नियमों से किया हो तो फिर इस बेहतर क्या हो सकता है...  

आज का दिन एक शुरूआत है उन तमाम लोगों के लिए जिनकी राम में आस्था है, आज का दिन किसी को उसकी अपनी जमीन वापस पाकर अपने लिए घर की नींव रखने का दिन है..
आज राम का दिन है, सबके अपने राम का दिन है..

और कोर्ट के चक्कर लगा के उस वकील के आराम का दिन है जिसने अपनी उम्र ख़फ़ा दी इस दिन के लिए.. उन तमाम लोगों के लिए सुकून का दिन है, जिनकी महत्वाकांक्षा राजनैतिक या व्यक्तिगत रूप से इस धर्मार्थ कार्य से जुड़ी रही.. 

एक बार फिर से. उन तमाम लोगों को नमन जिसने इस ईश कार्य हेतु अपने प्राणों की आहुति दी..

अब ईश्वर से ये प्रार्थना कि  प्राणियों में सद्भावना हो, व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति द्वेष कम हो... 

जय श्री राम...

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

बताओ उसको किसने मारा ?

मौत की आदत है साहब,
यही तो सियासत है साहब,
श्वेत कपड़े चमक रहे हैं,
लहू की होली खेल कर,
बड़ी भवन में मोल होगा,
गिने जाएंगी लाशें फिर,
बहस होगी, खेल होगा,
सच बोलेगा,उसे जेल होगा,
कागजों में पैदा होकर,
कागजों में मर गए,
जो कुचलने से बचे,
रोत- बिलखते घर गए,
हाथ जोड़े आएंगे वो,
दांत फिर निपोरेंगे,
आपकी फिर उँगलियों,
के छाप वो बटोरेंगे,
आप यूँ मरते रहेंगे,
आप यूँ डरते रहेंगे,
आप जो ना सम्भले,
तो खेल वो करते रहेंगे
देश की बातें करेंगे,
राष्ट्र हित सिखाएंगे वो,
भाई का सड़क पे मरना,
आप फिर भूल जायेंगे,
देश तो सबको है प्यारा,
देश भक्ति कर्तव्य हमारा,
दया बस इतनी दिखा दो,
बस मुझको ये बता दो,
उसकी खातिर चौडी है छाती
सीमा पर जिसे दुश्मनों ने मारा
पर भूख से जो मरा सड़क पे
बताओ उसको किसने मारा ??

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

ख्वाहिश है

ख्वाहिश  है ,
कि तुम फूल बन जाओ,
मै कांटा  बन जाऊं ,
तुम अँधेरा बन जाओ ,
मै सन्नाटा    बन जाऊं
ख्वाहिश  है,
कि तुम गीत बन जाओ ,
मै संगीत बन जाऊं ,
तुम प्रीत बन जाओ ,
मै तुम्हारा मीत बन जाऊं ,
 
ख्वाहिश  है ,
तुम सवाल बन जाओ,
मै जवाब बन जाऊं ,
तुम नींद बन जाओ ,
और मै ख्वाब बन जाऊं ,
 
ख्वाहिश है .
कि तुम्हारे   नर्म पांव   ,
कभी काँटों पे पड़े ,
कभी तुम्हारे  धडकन की आहट,
मरे हृदय के सन्नाटे  पे पड़े ,
 
ख्वाहिश है ,
तुम्हारे पांव को छू के ,
मेरे कांटे निकालने की सिहरन ,
तुम्हारे अंतर्मन तक पहुंच जाये ,
और मन से उठे गीत,
तुम्हारे हृदय को स्पर्श कर जाएँ,
और हम तुम्हारे मनमीत हों जाएँ !!!!

ख्वाहिश है,
कि तुम हाथों में हाथ रखो,
और हम सफ़र पे चलते हुए खो जाएँ,
तुम्हारी गोद हो ,और उँगलियाँ बालों में हों,
और  बस उनींदी सी  नींद के आगोश में हम सो जाएँ !!

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

सवाल और जिन्दगी


वो मूरत कैसी थी ?
वो जाने कैसा था पत्थर ?
वो सूरत कैसी थी ?
इसका ना मिला उतर ,
 
वो आँख कैसी थी?
वो थी कैसी चमक ?
वो खुशी कैसी थी ?
सुन खो गयी दमक .
 
वो सवाल कैसे थे  ?
वो जवाब कैसे थे ?
वो हाल कैसे थे ?
सुन  बेहाल हों गये .
 
उसके कुछ  सवालों के,
मैंने ढूढे जवाब खूब ,
अपने सवालों में,
मै उलझा रहा  खूब ?
 
बस इन सवालों से ही ,
चल रही है जिन्दगी,
गम की सेज पे मुस्कुरा के ,
पल रही है ये अभी !!

बुधवार, 1 जुलाई 2020

किसको खुदा और किसको तुम भगवान कहते हो ??



कभी हिन्दू तो कभी खुद को मुसलमान  कहते हो
जो कुछ बोलता नही उसे खुदा तो कभी तुम्ही भगवान कहते हो ?

जो खून से खेलता  है उसे तुम हैवान कहते हो
तो फिर किस वजेह से खुद को तुम इन्सान कहते हो ?

किसी पत्थर का कोई धर्म नही होता ,
चाहो शिव मान कर पूजा कर लो या फिर इसे मस्जिद के गुम्बद पे लगा दो ,

मरने के बाद किसी को  स्वर्ग और जन्नत में भेजने वालों
क्यूँ कहते हो कि लाश को  दफना दो या फिर आग    लगा दो  ?

खाने को तो  कसमे खाई जाती हैं इमां के सौदे में भी तो
आखिर किस ईमान को तुम मुकम्मल   ईमान कहते हो ?

बे वजह  कि उलझनों में  उलझ के रहते हो  खुद यहा
और इसे धर्म के नाम पर दिया गया इम्तिहान कहते हो  ,

जो खुद ही खुदा है  और  जो भगवान है खुद ही
उसकी  रखवाली   में  आखिर क्यूँ खुद को परेशान कहते हो ?

सरहदों में बाँटना है तो सर उठा के देख लो ऊपर
और इसे बाँटो जिसे तुम आसमान कहते हो  ,

एक दिन कहा था आकर के भगवान ने मुझसे    ' ऐ राजीव' !
"  उसे रोटी -  कपडा दो जिसे तुम  भूखा-नंगा इन्सान कहते हो .

 बताओ प्रेम से " हिन्दू नही मुस्लिम नही बस   इन्सान ही हो तुम  "
तो उस के लिए तो  तुम्ही  खुदा हो और भगवान ही हो  तुम ....................

मंगलवार, 30 जून 2020

स्त्री तेरी यही कहानी


तू चीखेगी तो,
जुबान काट दी जाएगी,
जब सुलगेगी ,
तो जला दी जाएगी,
तू कमजोर बनी रह ,
और पुरुष तुम्हे गुलाम बनाये रखे,
क्या यही तुम्हारे हिस्से में है ?

सही वक़्त है ,
उठ !
जाग !
रुढियों को लगा दे आग,
या तो तू तोड़ दे ,
जंजीरों को ,
या फिर कर  इन्तजार ,
जब तू फिर से
व्यभिचार कि नाली में बहा दी जाएगी !



सोमवार, 29 जून 2020

मै मरघट में जब जाता हूँ


मै   मरघट  में  जब  जाता  हूँ  ,

 मै  मर-घट  में  मर  जाता  हूँ  ,

 जब  मर  और  घट  न  घट  पाए..

  तो  खुद  ही  मै  घट  जाता  हूँ .//



मै  मरघट   को  समझाता  हूँ ,

 कि   मर  के  घट  न  पाउँगा  मै ,

 तुझे  आज  ये  बताता  हूँ  ,

 कि  कर  तू  मेरा  इंतजार...

  अभी  मै  कुछ  देर  बाद  मरघट  पे  आता  हूँ  ,



 ऐ  मरघट   तू   मुझे  क्या  जाने  ??

 मै  हूँ  इन्सान  एक  मरघट  का  ,

जो  मरघट  पे  तो  आता  है  ..

 पर  अपने  पीछे  एक  अद्भुत ,अविचल ,यथार्थ और

अविश्वसनीय   इतिहास  छोड़  वो  आता  है ........................


रविवार, 28 जून 2020

क्षितिज के उस पार

 
तुम  बुलाते हो,
 क्षितिज के उस पार से ,
हमे  वक़्त नही मिलता है,
खेते हुए पतवार से,
 एक कोशिश है,
 जो मुझे उस पार लेके जाएगी ,
शायद यही सोच ,
तुमसे मिलने के ,
इन्तजार में ,
हसीं स्वप्न   की तरह से जिन्दगी गुजर जायेगी ......

शनिवार, 27 जून 2020

बिक रहे हैं कौड़ियों के मोल कफ़न आज भी


 
मौत  देखिये  इंसानियत  से डर रहा है आज भी ,
रखवालों के हाथ में खंजर रहा है आज भी ,
 
खुद को मारा है इन्सान ने, अपने  जमीरों को दे सजा ,
कि आँखों के सामने उसके,लाशों का मंजर रहा है आज भी ...
 
जिन दरख्तों से काट दी हमने हजारों  डालियाँ ,
उन दरख्तों की गवाही देखिये कि, वहां बंजर रहा है आज भी,
 
खुद की तबाही का सबब जब रहा है तू यहाँ ,
फिर क्यूँ रोता हुआ , रात भर रहा है आज भी ??
 
हो रहे हैं सर कलम इंसानियत और ईमान के,
बिक रहे हैं देखिये जनाजे और कब्र इन्सान के ,
 
देख के मुस्कुरा रहे हम अपना ही दफ़न आज भी
बिक रहे हैं कौड़ियों के मोल कफ़न आज भी .........

शुक्रवार, 26 जून 2020

चूल्हे जलेंगे जरुर

चूल्हे जलेंगे जरुर ,
चाहे दस हजार रूपये में ,
बिकने लगे सिलिंडर ,
चाहे कोई आये ,
चाहे कोई जाये ,
चाहे कोई चिल्लाये ,
कोई दुश्मन बन जाये ,
या फिर कोई रहनुमा हो जाये ,
पर जलेगा सिलिंडर ,
जैसे देश जल रहा है !
आग में !

जो मालिक बनता है ,
वो भाग जाता है ,
जो अभी नही बना ,
वो ललचाता है ,
जो जमाने से है ,
वो तिल तिल जलाता है ,
मानो गरीबी नही ,
चिता जल रही हो ,
वो दांत निपोरते हैं ,
गरीबी खत्म करेंगे ,
और जोरदार बहस होती है ,
राजधानी के ,
सबसे महंगे होटल के,
सबसे महंगे हॉल में ,
मानो गरीबी का चीर हरण हो रहा हो ,
और वो,
जिनके यहाँ सुबह से सिलंडर की वजह से,
खाना नही बना ,
राम लाल लाइन में लगा है ,
धोती बांध के खिसका रहा है सिलंडर को ,
उसके घर में लाइव देख रही है ,
उसकी मोहिनिया ,
और सोच रही है ,
कि ये जो जोर जोर से बोल रहा है ,
यही आएगा अगली बार सता में ,
और सस्ता सिलिंडर देगा,
तभी रोने लगता है ,
भूख से ,
उसका छोटू ,
माँ-माँ रोटी- रोटी कह के ,
नही नही सिलिंडर सिलिंडर
चिल्ला के !
पर जलंगे जरुर चूल्हे ,
और जला दिए जाएंगे,
अरमान लाचारी के ,
खुद की रोटी सेंकने के लिए !
जलेंगे जरुर चूल्हे !!!

गुरुवार, 25 जून 2020

बस यूँ ही !


याद है तुमने कहा था ,
हाथों की लकीरों में कुछ नही है ,
और मै थाम के बैठा रहा था
तुम्हारी हाथों को ,
कि तुम्हारी हाथों की लकीरों में ,
कुछ भर दूँ ,
थोडा स्नेह ही सही ,
मेरे पास कुछ भी तो नही ,
तुम्हे देने को ,
पर फ़िर भी ,
जब भी सिहरन महसूस होगी ,
या फिर ये एहसास ,
कि हाथों को दबाये कोई ,
तो मिलूंगा अतीत के झरोखों में ,
स्नेह के साथ,
बस यूँ ही !!!....
प्रेम नही
एक एहसास बस ,
और कुछ भी तो नही ,
बस यूँ ही !!

बुधवार, 24 जून 2020

रिश्तों की जिल्दों को बिखरने न दिया !

वक़्त की शाख पे टूटे जो उम्मीद कभी,
खुद की उम्मीदों को कभी गिरने न दिया ,
हजार बार खुद गिरा ,खुद को उठाया मैंने ,
सफ़र में खुद को कभी भी बिखरने न दिया !
कभी खुद की जिद में तोडा खुद को बहुत ,
जिन्दगी की धुप ने अक्श को निखरने न दिया ,
"माहिर " जीता नही जिन्दगी किताबों की तरह ,
पर जिन्दा रिश्तों की जिल्दों को बिखरने न दिया !

"चमन- बहार" रिव्यु


"चमन- बहार"
रिव्यू

सबसे पहले बात कर लेते हैं ,फिल्म के नायक की ही ।

वेब सीरीज के इस दौर में,चाहे कोटा फैक्टरी के जीतू भईया हों या फिर पंचायत के सचिव जी , एक्टर  के रूप में अपने संजीदा अभिनय का लोहा मनवाते हुए जितेंद्र कुमार यह लगातार साबित कर रहे हैं, कि वे इस समय में डिजिटल परदे के जितेंद्र साबित हो रहे हैं।
इस कड़ी में चमन बहार के बिल्लू बन के वह अपनी दावेदारी और मजबूत कर रहे हैं।  

रिंकू जो किसी अधिकारी की बेटी होती है ,वो जब एक गाँव से सटे कस्बे में अपने पिता के साथ शिफ्ट होती है, तो गाँव -कस्बों  के कितनों के लिए आकर्षण का केंद्र बनती है । यह कहानी रिंकू ( रीतिका बदलानी ) के प्रेम में पड़े तमाम लफंडर,नेता टाइप और टपोरियों के आशिक मिजाजी की कहानी भी है। 



मुकम्मल प्रेम की कहानियाँ तो जमाने से कही जाती रही है, लेकिन अधूरे प्रेम की कहानी कहना हमेशा से ही थोड़ा चैलेंजिंग रहा है।
चमन बहार भी ऐसे ही प्रेम की एक कहानी है , जिसे आप अपने अंदर होते हुए महसूस करते हैं।  फिल्म देखते हुए आपके अंदर का बिल्लू कई बार जगता है। 

आप अगर गाँव से हों या शहर से, आप इस कहानी को अपने अंदर महसूस कर पाते हैं, अगर गाँव के हों तब तो समझिये आपकी जाने कितनों पलों की गवाही की कहानी को ही कह दिया है बिल्लू ने। 

जमाना चाहे कितना भी बदल जाए, प्रेम का रूप कस्बों और कुछ   इलाकों में उतना पेशेवर नहीं हुआ है, इस बात की गवाही है चमन बहार। एक तरफ़ा  प्रेम की इस कहानी में प्रतिस्पर्धा, जलन, इर्ष्या को दिखाना सबसे कठिन काम होता होगा शायद, लेकिन इसे जितने मजेदार तरीके से दिखाया गया है, कि आपको नायक के प्रति प्रेम हो जायेगा। 

प्रेम के एक दौर में जहाँ पत्थरों पर दिल में तीर मार के दर्शाने का रिवाज, हाथों पर नाम गुदाने का जुनून और किसी के प्रति भावों को एक लम्बे समय तक लेके चलने का जुनून जब ग्रीटिंग पर लिखे नाम में बदलने लगता है यह, कहानी उस दौर की है। 
यह उस दौर की कहानी है जब आप स्कूटी का पीछा एवन साईकिल से कर देते हैं। 

प्रेम हासिल न  होने पर प्रेम का हसीन दौर कैसे  दौरे और पागल पन को छु बैठता है ,यह गाथा उसे दौरे का भी है। 

छोटू और सोमु दो पात्र आपको हर शहर हर गाँव और कस्बे में मिल जायेंगे जो  शिला भईया और आशु भइया के साथ कहानी को आगे बढ़ाते हैं। 


क्या बिल्लू को उसका प्रेम हासिल हो पाता है ? 
क्या रिंकू भी बिल्लू को चाहती है ? शिला भईया और आशु की लड़ाई में जीत किसकी होगी? 

क्या चमन में बहार आ  पाती है ?  बिल्लू का प्रेम कस्बों के तमाम की लड़कों की तरह दम तोड़ देता है, रिंकू की याद दे जाता है या फिर चमन में बहार कायम रहती है?? 

यह जानना है तो देखिये "चमन- बहार"

आपका दिया हुआ एक घण्टा इक्यावन मिनट आपको एक नई दुनिया में ले जायेगा, गारंटी है.. 

तो देख डालिए.. अभी के अभी.. 





सोमवार, 22 जून 2020

कोई सफ़ाई नही देता !

जो महफ़िल उठ गई एक बार ,
कोई दिखाई नही देता ,
कैसे सब चले गए ,
क्यूँ दिखाई नही देता
सभी के हाथ में हैं खून,
सभी के हाथ खंजर है,
सभी खामोश हैं चुपचाप,
पर कोई सफ़ाई नही देता !

रविवार, 21 जून 2020

कब जख्मों को सहलाओगे ??

समर शेष है , और विशेष है ,
विध्वंसों के अवशेषों पर ,
सिर्फ रुदन है ,और द्वेष है,
ऐ मानव के चरम पुँज ,
तुम कब तक होश में आओगे ?
मानवता के राग अलापे,
मनुज मात्र को तुम भरमाके ,
कब अश्कों की बारिश रोकोगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे ?
कब तक होश में आओगे ?
यहाँ समाज के नाम युद्ध का,
लाशों का उपहार दिया बस ,
जिसने कुछ भी कहा यहाँ तो,
धड़ से सिर उतार दिया बस,
कब तक तुम इस तरह लहू की,
नदियाँ यूँ ही बहाओगे ,
कब तक स्वार्थ के पन्नों से,
नफरत के शब्द मिटाओगे ,
कब तक शोणित से सींच के ,
नफ़रत के वृक्ष बढ़ाओगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे
कब तक होश में आओगे ,
देवी कह के जिसको पूजा ,
उसका भी नही सम्मान किया ,
वसुधा को लाशों की चादर से,
ढँक कर के अपमान किया ,
ऐ मानव तुम धर्मवीर हो ,
ऐ मानव तुम कर्मवीर हो ,
थोड़ा सा संयम भी रखो ,
यूँ शीघ्र तुम न अधीर हो ,
इतिहास के पन्नों पर कब तक ,
काले अक्षर में लिखे जाओगे ,
तुम ऐ मानवता के चरम पुँज,
एक बार फिर तुम्ही बता दो ,
कब तक आखिर , हाँ हाँ कब तक,
कब तक होश में तुम आओगे,
कब जख्मों को सहलाओगे ??

शनिवार, 20 जून 2020

जब दिशाएँ मौन हों

जब दिशाएँ मौन हों,
सब पूछें तुम कौन हो,
राह चलते जाइये बस,
रास्ते बनाइये बस,
वक़्त ऐसा आएगा ,
वक़्त ठहर तब जाएगा,
पास फिर सब आएंगे,
सब गले लगाएंगे,
फिर सितारा गर्दिशों से,
आसमां में आएगा ,
गुमनाम मुसाफ़िर फिर से,
एक बार मंजिल पायेगा !

शुक्रवार, 19 जून 2020

सब बराबर चोर हैं

बाजुए कातिल में साहब ना किसी के जोर है,
गौर से तो देखिए जनाब, सब बराबर चोर हैं ,
भेड़ बनके भेड़िए,सियारों को सहला रहे हैं,
और उनकी मूर्खता पर मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं,
तुम ही मेरे रहनुमा हो,तुम सबके माई-बाप,
सफेदपोशों का नारा यूँ अब फिर घनघोर है,
नोट पे बिकते हैं वोट, चोट पे लगती है चोट,
खुद को सूरमा समझता है,जो सबसे कमजोर है!!


गुरुवार, 18 जून 2020

अजायबघर है एक

अजायबघर है एक,
इंसान है उसमें ,
सजा कर रखा हुआ सामान,
विस्तृत अभिव्यक्ति की खामोशी,
सुना सा स्वप्न,
सन्नाटे में,
अंधियारे में ,
डूबा हुआ रास्ता ,
पथिक थक भी नही सकता,
रुक भी नहीं सकता,
चल भी नहीं सकता,
करीने से सजे हुए ,
कतारों के बिखर जाने के डर से,
रुका है ,
शांत है,
विश्रान्त है,
काश टूट जाये ये ख़ामोशी !
शीघ्र !
ताकि इंसान अजायबघर से बाहर,
निकल आये ,
और इंसान हक़ीक़त का इंसान हो जाये !!

बुधवार, 17 जून 2020

रेलगाड़ी

जाने कितनी स्वप्न साधना,
लेके चलती है रेलगाड़ी,
इन पहियों पर हजारों
ख़्वाब इधर से उधर होते हैं,
एक साथ ,
हजारों मिलन और विदा ,
के बीच का पड़ाव लिए ,
चलती है ट्रेन !
मंथर सी चाल !

समंदर में चलता नाव

कोई पन्ना मानो बिखरा है ,
कहीं आस पास ही,
समंदर से हाथ दो हाथ करते हुए,
हिम्मत और जज्बात के साथ,
खुद से ही है युद्ध,
एक खोज खुद के अंदर,
अनवरत जारी है युद्ध,
खुद को पाने के लिए ,
जो गुम सा लगता है अब कभी,
लेकिन जारी है जंग,
जब तक पुनः पा न लें खुद को !
यूँ मानो समंदर में चलता हुआ नाव कोई,
पा जाए किनारा ..

मंगलवार, 16 जून 2020

एक दिन

एक दिन
बंद कर दिया हमने टीवी,
अचानक से लगा ,
नब्ज़ शांत पड़ने लगा,
मन परेशान और हैरान,
इतनी शांति से ,
दिल बैठा जा रहा था,
कोई कहीं चिल्ला नहीं रहा था,
कहीं कुछ महंगा नहीं था,
ना ही नमक में ,
आयोडीन की कमी थी,
ना पानी मे मिनरल्स की,
ऐसा पानी कौन पीता है,
बिना आयोडीन और मिनरल्स के,
कौन जीता है,
सामने वाली दीवार पर ,
हनुमान जी राम जी के पैर के पास,
हाथ जोड़े खड़े थे,
मकड़ी के जाले में मकड़ियां व्यस्त थीं,
जी और बैठने लगा,
बाहर निकला तो देखा आसमान में पक्षी थे ,
जैसे बचपन में उड़ते थे,
दिमाग मानने को तैयार नहीं था ,
कि ये पक्षी रोज उड़ते होंगे,
तभी आवाज हुई ,
लगा गली में कोई शोर है,
हृदय को लगा वापस कुछ मिल रहा है,
लगा कोई किसी को मार रहा है,
या फिर गाली दे रहा है ,
या फिर कोई किसी की बुराई कर रहा है,
लेकिन देखा तो कुछ नहीं था,
बच्चे खेल रहे थे कोई खेल,
दिल अब मानो बैठा जा रहा था,
हृदय से रक्त संचार रुकने को था,
इतना सन्नाटा बर्दाश्त नही हो पा रहा था,
कहीं पुराने अखबार भी नहीं,
कोई किताब नहीं ,
कोई उपन्यास नहीं ,
कैसे भी लड़खड़ाया उठा,
RO के बदले घड़े से पानी लिया,
सुकून नहीं मिला,
थोड़ा नमक मिलाया ,
सुकून नहीं मिला,
कहीं से कोई ख़बर नहीं,
और मुझे बिल्कुल सब्र नहीं,
काँपते हाथों से पुराना फोन उठाया,
डॉक्टर को नंबर मिलाया,
डॉक्टर आधे घण्टे में आया,
डॉक्टर ने कहा,
टीवी बंद क्यों है,
चार कंपनी की दवा दे रहा हूँ ,
खाइए,
और लीजिये ये चैनल देखिये,
टीवी ऑन हुआ,
डॉक्टर थोड़ा मौन हुआ,
मानो जीवन वापस आ गया,
मैं अपना हृदय स्पंदन वापस पा गया,
नब्ज़ की गति सामान्य हो गयी ,
टीवी पर प्राइम टाइम चल रहा था,
दो लोग आपस में चिल्ला रहे थे,
नीचे कोने में खबर थी ,
4 लोगों की भीड़ ने जान ले ली,
मैं RO खरीदने का मन बना रहा था,
और अपने स्मार्ट टीवी
और स्मार्ट फ्रिज और
स्मार्ट फोन की दुनिया मे वापस आ रहा था !

सोमवार, 15 जून 2020

रास्तों का विचलन

इतना आसान सा नहीं होता , रास्तों का विचलन ! चलते -चलते कुछ ठहराव और कुछ नयापन की तलाश कई बार मंजिल को आसान, रोमांचक तो कई बार बोझिल सी बना देती है ! फिर भी सफ़र ऐसा कि चलना जरूरी भी है और शायद मजबूरी भी ! कई पथिक ऐसे भी होंगे जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता किसी चीज से , वो बस चल रहे हैं अपनी गति ,और अपने चाल से बढ़ रहे हैं कि पहुँच तो जायेंगे ही ! और यही विश्वास उन्हें आगे बढ़ा रहा है ! दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी राहगीर जो गुणा भाग में लगे हैं , भूतकाल के अनुभवों को भविष्य के पथ पर ले जाने से पहले वर्तमान की तराजू पर तौलने में वो कुछ खोना नहीं चाहते और शायद इस तरह से वे वर्तमान का आनंद खो रहे हैं ! लेकिन पाना और खोना ही तो जीवन का आनंद है ! जिसने सिर्फ पाया हो उसने और जिसने सिर्फ खोया हो उसने ,दोनो ही प्रकार के राही पूर्ण रूप से जीवन पथ को समझने में सफल रहे हों ऐसा नहीं कहा जा सकता शायद ! लेकिन शायद सबसे आनंद की विषयवस्तु है वर्तमान को आत्मसात करना और मंजिल और रास्ते के साथ का तारतम्य 

रविवार, 14 जून 2020

हिन्दू धर्म vs संत


धार्मिक मान्यताएँ हमेशा ही धर्म के उत्कर्ष या उत्थान के लिए एक आवश्यक अंग की तरह से देखा जाती रही हैं ! और इन मान्यताओं के प्रचार प्रसार के लिए आदिकाल से ही धर्म प्रचारक, सन्त ,धार्मिक गुरुओं की महत्ता रही है ! लेकिन कालांतर में जैसे-जैसे समय बदल रहा है , हिन्दू धर्म में प्रचारकों, संतों गुरुओं की जगह दोयम दर्जे के मानसिकता वाले व्यक्तियों ने ले लिया और यह आज भी निरंतर जारी है ! हमने या आपने कभी कारण ढूंढने की कोशिश नहीं कि हमने अपनी मानसिकता बदलना जारी रखा !
हमने पहले एक संत देखा अनुयायी बने, फिर जब उसने धोखा दिया तो हमने दूसरे में सन्त देखा फिर उसने धोखा दिया तो हम तीसरे में देखने लगे और यह अनवरत जारी रहा ! और इसका फायदा उठाया है धार्मिक व्यापारियों ने , उन्हें हमारी धार्मिक आस्था और मानवीय आस्थाओं में एक बड़ा व्यापार दिखा , और हम उन्होंने हमें उस व्यापार में उपभोक्ता की तरह देखा , और बाकी व्यापारों में जिस तरह से उपभोक्ता शिकार होता है , हम भी शिकार होते चले गए ! और इन धार्मिक व्यापारियों का वर्चस्व कुछ इस तरह से रहा कि जो वास्तविक सन्त या प्रचारक थे वो या तो गौण होते गए या फिर उन्हें ख़ुद को गौण करना पड़ता रहा !
और धार्मिक उपभोक्तावाद के इस बाज़ार का खेल किसी बड़े नशे के व्यापार से भी ज्यादा बड़ा रहा है, इसमें किसी हम इस कदर जकड़ जाते हैं कि हमें इस बात का आभास भी नहीं रहता है कि हम जिसे अपना आराध्य सन्त मान रहें हैं उसका भूतकाल कैसा रहा है ! हम झुंड के भेड़ों की तरह चरण वंदन में इस कदर धन्य महसूस करने में व्यस्त रहते हैं कि वास्तविकता से हमारा परिचय भी नहीं हो पाता है ! और वही आराध्य जब किसी मुकदमे, या किसी व्यभिचार वाले केस में फंसता है तो हम अपना माथा पीटते हैं ,क्योंकि हमारे पास अपना माथा पीटने के सिवा कोई और चारा भी नहीं रहता है !
लेकिन ये ऐसे ही नहीं होता, होता कुछ यूं है कि हमारे पास अच्छे सन्त और छद्म सन्त दोनों होते हैं लेकिन सच के संत को भीड़ से मतलब नहीं होता तो हमें मार्केटिंग के तहत जिसका मार्केट वैल्यू ज्यादा दिखाया जाता है हम उस तरफ मुड़ जाते हैं !
हम यह नहीं सोच पाते कि जो वास्तव में सन्त है उसे महँगी गाड़ियों, अरबों के बंगलों, महंगे कपड़े, महंगे उपहारों और चढ़ावा, टीवी चैनलों पर महिमामंडन की आवयश्कता क्यूँ क्रमशः

शनिवार, 13 जून 2020

भावुकता का दौर

एक दौर होता है, जो भावुकता का होता है, तब छोटी-छोटी बातें भावुक कर जाती हैं, जैसे कि घर से दूर जाना, यारों -दोस्तों से दूर जाना, पहली बार किसी शहर में पढ़ने जाना, या फिर कॉलेज से पहली बार निकलना, या फिर नौकरी के सिलसिले में किसी शहर में पहली बार जाना !
और फिर एक दौर आता है कि सब एडजस्टमेंट की चीज हो जाती है ! इसमें जो चीज भावनात्मक रूप से कमजोर लोगों के लिए कठिन होता है वो भावुकता को एडजस्ट करना !
बहुत सारे लोगों के लिए इस भावुकता को उतना महत्व नहीं दिया जाता , उनके लिए भी देश छोड़ के कहीं और जाते वक्त या परिवार से निकलते वक्त यह थोड़ा सा हावी होने की कोशिश करता है !
लेकीन उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और महत्वकांक्षाएं इतनी मजबूत होती हैं कि वो अपनी इस कमजोरी को क्षणभर में दूर कर के आगे बढ़ जाते हैं ! लेकिन जो ऐसा नहीं है ,वो अपने तमाम गुणों और व्यक्तिगत उपलब्धियों के बाद सिर्फ भावुकता में बह के उस गति से आगे नहीं बढ़ पाता ,और कई बार इन सब चीजों की वजह से वो अभीष्ट स्थान पर नहीं पहुँच पाता !
और कालांतर में भावुकता के वशीभूत कभी-कभी उससे मंजिल तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लगता है ! और उसे इस बात का एहसास तब होता है जब वह चारों तरफ यह पाता है कि भावुकता का स्थान या तो सबसे नीचे है या फिर इसे ज्यादातर मामले में नकारात्मक पहलू माना जाता है ! लेकिन भावुक व्यक्ति इसे तब भी पूर्णतः आत्मसात नहीं कर पाता ! और वह अपनी दुनिया में ही व्यस्त और मस्त रहने की जुगत में लगा रहता है !
किसी की जीत किसी की हार,
यूँ ही बढ़ रहा संसार !!

शुक्रवार, 12 जून 2020

मरे हुए आदमी की कविता


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आदमी तो आदमी होता है,
जब जिंदा होता है,
लेकिन जैसे ही मरता है,
आदमी आदमी नहीं रह जाता,
वो कुछ हो जाता है,
किसी के लिए सामान,
किसी के लिए सम्मान,
किसी के लिए हिन्दू,
किसी के लिए मुसलमान,
किसी के लिए दलित ,
किसी के लिए सवर्ण,
किसी के लिए ब्राह्मण ,
किसी के लिए
ठाकुर ,यादव, आदि, आदि,
लाश की तो पार्टी भी बदल जाती है,
वो कभी इस पार्टी का ,
कभी उस पार्टी का,
हो जाता है ,
लेकिन आदमी, आदमी नहीं रहता,
जिंदा रहता है तो,
किसी का अपना सगा,
किसी का शत्रु होता है,
लेकिन मौत के बाद,
आदमी एक मुक़म्मल लाश भी नहीं रहता ,
गिद्धों के ठहाकों के बीच में,
आदमी सामान रह जाता है !

नग्न पाँव के छालों से

सिकन्दर का गुरुर भी यहाँ टूट के बिखरा,
सियासत दारों तुम ना बचोगे ऊँची दीवालों से !
हो जाओगे आखिर महरूम तुम भी निवालों से,
बस दो-दो हाथ नहीं करो, नग्न पाँव के छालों से !  

गुरुवार, 11 जून 2020

किसानों से एक निवेदन


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हे किसान ऑफ भारत, एक किसान पुत्र होने के नाते मैं कुछ कहना चाह रहा हूँ ! इस आज़ाद भारत को आप अपने लिए आज़ादी मत मानिए ! पहले आप नील उगाते होंगे अब कुछ और उगाते हैं, लेकिन अपने हालात को लेके किसी से भी उम्मीद मत पालिये !
अगर आप को आन्दोलन करना है तो आप जहां भी हैं वहाँ से ही आंदोलन करें ! किसी नेता के कहने पर ट्रक और बस में लद के आप दिल्ली ,लखनऊ, पटना अहमदाबाद में लाठी उठाये चले आते हैं , और दूसरे नेता के कहने पर आप लाठी खा कर वापस चले जाते हैं !
हो सकता है, आपको इस एक दिन के लिए 200-300 रुपये मिले होंगे लेकिन जब आप वापस जाएंगे तो सवारी के अभाव में आप को उनमें से कुछ पैसे रास्ते में देना पड़ जाए !
आप जंतर मंतर पर न जाएं ना ही रामलीला मैदान ही क्योंकि दिल्ली के ये सब जगह आपके धरना नहीं ,आपके मंत्री संतरी लोगों के लीला के लिए बना है ! दिल्ली ही आना है तो किसान बन के नहीं आये , आप किसी पार्टी से जुड़ के आएं या केसरिया या हरा झंडा उठा कर आएं , और देखें फिर कहाँ हिम्मत है जो कोई दिल्ली में आपको घुसने से मना कर दे !
आप किसान हैं , और आप ज्यादा ही गम्भीरता से लेते हैं जय जवान, जय किसान वाले नारे को ! और आप ही सबसे ज्यादा बेचैन रहते हैं अपने बेटे को सेना के जवान बनाने को ,जिसे मजबूरी में नौकरी बचाने के लिये अपने आलाकमानों के आदेश से मजबूर आपके ऊपर पानी बरसाना पड़ता है ,गोली दागनी पड़ जाती है ! वो भी क्या करे उनमें से कुछ घर जाके अफसोस जरूर करते होंगे !
आप अपने धोती को जितना मैली करेंगे ,आपके हुक्मरानों के कुर्ते उतने ही सफेद होंगे !
आप आंदोलन करिए जैसे महराष्ट्र में किसान मजबूरी में किये थे , परेशानी सहिये , और सिर्फ उतना ही अन्न पैदा कीजिये जो सिर्फ आप के काम आए ! बाजार में मत बेचिए , फिर वो सारे बुद्धिजीवी सरीखे परजीवी जो आपको गुंडा मवाली बदमाश साबित करने पर तुले हैं , निवाले को तरसेंगे और तब आपकी भूख की कीमत , आपके जलती पीठ, जाड़े में कांपते पानी में डूबे घुटनों की सिहरन उन्हें उनकी कानों को महसूस होगी !
मैं जानता हुँ ये आसान नहीं है ,लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि आप तब भले ही बीमारी से मर जाएं , लेकिन खाद के लिए लिए गए कर्ज से , पुलिस के डंडे से , आत्महत्या से , फसलों के सुख जाने को देखते हुए दर्द से नहीं मरेंगे !
क्रमशः

बुधवार, 10 जून 2020

अहले शहर की बातें,

कुछ भी नहीं बुरी हैं,
इस अहले शहर की बातें,
यूँ शाम के तराने,
यूँ घनी रातों की बातें,
कुछ लोग हैं जो बाकी,
अपने से इस शहर में,
अपने से थे वो खूब ,
क्यूँ अब होने लगे बेगाने ,
यूँ शाम ढल सी जाएगी,
यूँ सफर गुजर जाएगा,
एक बार सुबह जो हुई तो,
फिर सूरज निकल जायेगा ..

मंगलवार, 9 जून 2020

किरदार

कुछ इस क़दर मिरा भी किरदार यूँ रहा,
जम्हूरियत भी मेरी ,गुनाहगार भी मैं रहा,
यूँ हाथों में खूं से सना खंजर भी नहीं था,
जाने क्यूँ फिर यूँ तलबगार भी मैं रहा !
खबरनवीसों ने छापी कहानी सियासत की,
हर हर्फ़ मैं ही था ,अख़बार भी मैं रहा !
यूँ खूब बचाया हमने इस कूच-ए-दरिया में,
उस बार भी मैं ही था और इस बार भी मैं रहा !

अंदर का आदमी

बचपन की बातें अब भी याद हैं,
एक कोने में पड़ी पुरानी किताब है,
आदमी बनना था बड़ा एक दिन,
आदमी ही आदमी अब ना रहा,
बालपोथी के ककहरे ,
अब नहीं मुझे याद है,
आज उन्हीं अलमारियों में,
खोजता हूँ स्वप्न अपने,
फिर से वो जुनून खुद में,
देखने की कोशिश में हूँ,
दीमकों के खाये हुए पन्नों में ,
बचपन ढूंढता हूँ,
आदमी बनने से अब ,
डरने लगा हूँ जाने क्यों,
छोटा रहना मुझे अब ,
जाने कब से आ गया है,
या मेरे अंदर का आदमी,
उस बड़े आदमी को खा गया है !

सोमवार, 8 जून 2020

जब दिशाएँ मौन हों

जब दिशाएँ मौन हों ,
सब पूछें तुम कौन हो ,
चुप चाप तब ख़ुद के,
पाँवो का चीत्कार सुनो ,
हर क़दम आगे बढ़ाओ ,
जीत के करीब आके,
तब बताओ कौन हो ,
तुम सुनाओ कौन हो !
अनवरत चलो निरंतर ,
राहों पे तुम मौन हो !

रविवार, 7 जून 2020

तकलीफों की आह में,

तकलीफों की आह में,
शिकन की पनाह में ,
गुमनाम सा कभी ,
महसूस होता है,
ढूंढता हूँ कभी खुद को,
मुझ में,
या फिर मुझ को,
खुद में तलाशता हूँ !
बिखर रहा है कुछ,
समेट रहा सब कुछ,
लेकिन फिसल रहा है,
कुछ !
मानों रेत की मानिंद ,
भीड़ से डर लगता है,
सन्नाटा कौंधता है,
मानों मस्तिष्क ना हो,
कोई कथाकोविद हो,
कह रहा कुछ ,
और गढ़ रहा हो कुछ,
उलझनों की तारों में ,
तलाश कर रहा हो,
एक मंजिल इस नश्वर दुनिया से परे !



शनिवार, 6 जून 2020

इश्तेहार

बड़ा अच्छा सा लगता है,अक्सर घर में रहना,
कौन चाहता है यूँ हर रोज ही सफ़र में रहना !
शिकायत किस से करें जो खुद है जिम्मेदारी अपनी,
कल से डरना, कल की सोच आज भी डर में रहना 


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वो था मेरा रकीब, जो सबसे करीब था,
अमीर समझा सबने,जब सबसे गरीब था !

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वो खबर बनते-बनते समाचार में छप गये,
हर गली हर मुहल्ले में हर बाज़ार में छप गये,
क्या खूब रहा आलम ,चौराहे के कतिलोँ का भी,
जिसे अखबार में छपना था वो इश्तेहार में छप गये !!


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शोर कहीं पर कुछ ज्यादा ही हुआ है,
कुछ लोग आजकल बहुत खामोश रहते हैं!


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