बचपन की बातें अब भी याद हैं,
एक कोने में पड़ी पुरानी किताब है,
आदमी बनना था बड़ा एक दिन,
आदमी ही आदमी अब ना रहा,
बालपोथी के ककहरे ,
अब नहीं मुझे याद है,
आज उन्हीं अलमारियों में,
खोजता हूँ स्वप्न अपने,
फिर से वो जुनून खुद में,
देखने की कोशिश में हूँ,
दीमकों के खाये हुए पन्नों में ,
बचपन ढूंढता हूँ,
आदमी बनने से अब ,
डरने लगा हूँ जाने क्यों,
छोटा रहना मुझे अब ,
जाने कब से आ गया है,
या मेरे अंदर का आदमी,
उस बड़े आदमी को खा गया है !
एक कोने में पड़ी पुरानी किताब है,
आदमी बनना था बड़ा एक दिन,
आदमी ही आदमी अब ना रहा,
बालपोथी के ककहरे ,
अब नहीं मुझे याद है,
आज उन्हीं अलमारियों में,
खोजता हूँ स्वप्न अपने,
फिर से वो जुनून खुद में,
देखने की कोशिश में हूँ,
दीमकों के खाये हुए पन्नों में ,
बचपन ढूंढता हूँ,
आदमी बनने से अब ,
डरने लगा हूँ जाने क्यों,
छोटा रहना मुझे अब ,
जाने कब से आ गया है,
या मेरे अंदर का आदमी,
उस बड़े आदमी को खा गया है !
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