इतना आसान सा नहीं होता , रास्तों का विचलन ! चलते -चलते कुछ ठहराव और कुछ नयापन की तलाश कई बार मंजिल को आसान, रोमांचक तो कई बार बोझिल सी बना देती है ! फिर भी सफ़र ऐसा कि चलना जरूरी भी है और शायद मजबूरी भी ! कई पथिक ऐसे भी होंगे जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता किसी चीज से , वो बस चल रहे हैं अपनी गति ,और अपने चाल से बढ़ रहे हैं कि पहुँच तो जायेंगे ही ! और यही विश्वास उन्हें आगे बढ़ा रहा है ! दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी राहगीर जो गुणा भाग में लगे हैं , भूतकाल के अनुभवों को भविष्य के पथ पर ले जाने से पहले वर्तमान की तराजू पर तौलने में वो कुछ खोना नहीं चाहते और शायद इस तरह से वे वर्तमान का आनंद खो रहे हैं ! लेकिन पाना और खोना ही तो जीवन का आनंद है ! जिसने सिर्फ पाया हो उसने और जिसने सिर्फ खोया हो उसने ,दोनो ही प्रकार के राही पूर्ण रूप से जीवन पथ को समझने में सफल रहे हों ऐसा नहीं कहा जा सकता शायद ! लेकिन शायद सबसे आनंद की विषयवस्तु है वर्तमान को आत्मसात करना और मंजिल और रास्ते के साथ का तारतम्य
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