बड़ा अच्छा सा लगता है,अक्सर घर में रहना,
कौन चाहता है यूँ हर रोज ही सफ़र में रहना !
शिकायत किस से करें जो खुद है जिम्मेदारी अपनी,
कल से डरना, कल की सोच आज भी डर में रहना
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वो था मेरा रकीब, जो सबसे करीब था,
अमीर समझा सबने,जब सबसे गरीब था !
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वो खबर बनते-बनते समाचार में छप गये,
हर गली हर मुहल्ले में हर बाज़ार में छप गये,
क्या खूब रहा आलम ,चौराहे के कतिलोँ का भी,
जिसे अखबार में छपना था वो इश्तेहार में छप गये !!
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शोर कहीं पर कुछ ज्यादा ही हुआ है,
कुछ लोग आजकल बहुत खामोश रहते हैं!
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कौन चाहता है यूँ हर रोज ही सफ़र में रहना !
शिकायत किस से करें जो खुद है जिम्मेदारी अपनी,
कल से डरना, कल की सोच आज भी डर में रहना
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वो था मेरा रकीब, जो सबसे करीब था,
अमीर समझा सबने,जब सबसे गरीब था !
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वो खबर बनते-बनते समाचार में छप गये,
हर गली हर मुहल्ले में हर बाज़ार में छप गये,
क्या खूब रहा आलम ,चौराहे के कतिलोँ का भी,
जिसे अखबार में छपना था वो इश्तेहार में छप गये !!
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शोर कहीं पर कुछ ज्यादा ही हुआ है,
कुछ लोग आजकल बहुत खामोश रहते हैं!
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