मंगलवार, 10 नवंबर 2020

आहुति या स्वाहा ?


एक नेता जी थे, उनके साथ हमेशा सौ दो सौ लोग नारा लगाते हुए घूमते थे, चुनाव का दिन नजदीक आते जा रहा था और रोज सौ दो सौ लोग जुड़ते जा रहे थे, चुनाव प्रचार के अंतिम दिन नेता जी ने भोज रखा,  उसमें अनुमान था कि चार हजार तक लोग जुट जायेंगे, लेकिन नियत समय पर लगभग दस हजार लोग जुट गए,  नेता जी को अपने समर्थकों के इस अपार भीड़ को देख के ऐसी खुशी हुई मानो धोबी को अपने खोये हुए गधे के मिल जाने पर होती है.

नेता जी हाथ जोड़े , शीश नवाये अपने समर्थकों के आगे नत्मस्तक थे, और भविष्य को सोचते हुए कर्ज लेकर बाकी 6 हजार लोगों के खाने का इंतजाम किया गया.. और लोगों ने वह शाम मुर्गा और सुरा पान में डूब कर नेता जी जिंदाबाद से गुंजायमान रखा...  जिंदाबाद की गूंज में नेता जी को सदन के टेबल पर की थाप सुनाई दे रही थी... 

खैर भोज खत्म हुआ, और आचार संहिता आदि को ध्यान में रखते हुए बाकी का समय शांति से चल रहा था.. नेता जी कुर्ता वगैरह के नाप के लिए दर्जी को फोन कर रहे थे, और दो चार हलवाईयो को भी अग्रिम  ऑर्डर दे दिये..

चुनाव शांति पूर्ण सम्पन्न हो रहा था, लोग आते और नेता जी से कहते कि फलाने बूथ पर गया था, सिर्फ आपको ही वोट पड़ रहा है.. और नेता जी से अगले बूथ तक जाने का किराया और कुछ वोटों के हिसाब से नोट लेके अगले बूथ की तरफ चले जा रहे थे.. नेता जी की आर्थिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं थी ,लेकिन लोकतंत्र में आहुति देने के लिए और भविष्य को सोचते हुए उन्होंने अपने सभी जान पहचान वालों से किसी न किसी बहाने इतनी रकम रख ली थी की शाम तक आराम से अलग अलग बूथों के बारे मे खबर देने वालों को बख्शीश दे सके.. 


चुनाव बीतने के अगले तीन चार दिन तक नेता जी की घर पर सौ दो सौ लोगों का मजमा लगा रहता और अलग अलग गणित लगा कर नेता जी को जीत का आश्वासन दिया जाता रहता... साथ ही आने वाले समय में नेता जी कौन सी गाड़ी लें, क्या पहनें के साथ साथ घर में कौन सा टाइल्स आदि पर भी बहस चलती रही.. 

लोकतन्त्र चाय नाश्ता और मुर्गा खा कर मजबूत हो रहा था,  
अब वो घड़ी आ गयी जिसके लिए नेता जी ने, अपनी गाड़ी, जमीन और घड़ी तक गिरवी रख छोड़ी थी... 
सुबह का समय था, नेता जी ने बीस लीटर दूध मंगा लिया कि चाय बनाने में कोई दिक्कत ना हो..  वो बाहर निकल कर लोगों के लिए कुछ कुर्सियां और चारपाई लगवा लिए, और अपना सोफा भी बाहर निकलवा के उस पर बैठ गए..

समर्थकों का इंतजार करने लगे, समय थमा सा था लेकिन इतना भी नहीं जैसे जैसे समय बीतता उनके समर्थकों की अनुपस्थिति उन्हें खटक रही थी, कि रोज तो सुबह आ जाते थे और आज जब शुभ घड़ी आ गयी है तो कहाँ मर गए हैं सब..  लेकिन चूंकि नेता को संयम रखना होता है ,यह सोच कर अंदर टीवी पर चुनाव का गणित देखने लगे... 
समय बढ़ रहा था परिणाम भी आते जा रहा था, उनके क्षेत्र में कौन बढ़त बनाये है और कौन दो नंबर पर है दिख जा रहा था अक्सर टीवी पर.. 

लेकिन जिस तरह से एक फेल हो गया विधार्थी बार बार रिजल्ट चेक करता है, उसी तन्मयता और व्यग्रता से वे अलग अलग चैनल  बदल रहे थे और अपना नाम देखना चाह रहे थे .. 

इसी बीच वो बाहर झाँक कर देख चुके थे ,समर्थकों से भरा उनका बैठक खाली पड़ा था.. उनका दिल बैठ रहा था, तभी उन्हें अपने क्षेत्र का पूर्ण परिणाम दिखाई दिया, ऊपर से देखते हुए वो नीचे की तरफ देखते गए, उन्हें अंत में अपना नाम दिखाई दिया, 
राम बिलास मिश्रा कुल वोट 15..
नेता जी बौखलाए ,चिल्लाये,और मूर्छित होकर गिर पड़े,  तभी अंदर से कोई बाहर निकल कर आया, नेता जी के मुँह पर पानी के छींटे दिये गए, नेता जी होश में आये, वोट के लिए अलग अलग शहरों से घर में आये संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों को चिल्ला कर बुलाये  और 18 से अधिक उम्र वाले सदस्यों को गिना, कुल संख्या थी बीस .. नेता जी बाहर के समर्थकों को माफ कर चुके थे... 

नेता जी लोकतन्त्र में आहुति देते देते, सब कुछ स्वाहा कर बैठे थे,  लोकतन्त्र में समर्थकों का मर्म, धर्म और कर्म वो समझ चुके थे, बाहर हलवाई आ चुका था, और दूर जाते हुए जुलूस में उन्हें जिंदाबाद वाली आवाजें सुनी हुई लग रही थीं, बस आज नाम उनका नहीं था उन नारों में... 

लोकतन्त्र अपनी ऊंचाई पर था, नेता जी लोकतंत्र के अपने हिसाब और समर्थकों का चेहरा याद करने की कोशिश कर रहे थे... 

इति राजनीति : 

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