शनिवार, 13 जून 2020

भावुकता का दौर

एक दौर होता है, जो भावुकता का होता है, तब छोटी-छोटी बातें भावुक कर जाती हैं, जैसे कि घर से दूर जाना, यारों -दोस्तों से दूर जाना, पहली बार किसी शहर में पढ़ने जाना, या फिर कॉलेज से पहली बार निकलना, या फिर नौकरी के सिलसिले में किसी शहर में पहली बार जाना !
और फिर एक दौर आता है कि सब एडजस्टमेंट की चीज हो जाती है ! इसमें जो चीज भावनात्मक रूप से कमजोर लोगों के लिए कठिन होता है वो भावुकता को एडजस्ट करना !
बहुत सारे लोगों के लिए इस भावुकता को उतना महत्व नहीं दिया जाता , उनके लिए भी देश छोड़ के कहीं और जाते वक्त या परिवार से निकलते वक्त यह थोड़ा सा हावी होने की कोशिश करता है !
लेकीन उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और महत्वकांक्षाएं इतनी मजबूत होती हैं कि वो अपनी इस कमजोरी को क्षणभर में दूर कर के आगे बढ़ जाते हैं ! लेकिन जो ऐसा नहीं है ,वो अपने तमाम गुणों और व्यक्तिगत उपलब्धियों के बाद सिर्फ भावुकता में बह के उस गति से आगे नहीं बढ़ पाता ,और कई बार इन सब चीजों की वजह से वो अभीष्ट स्थान पर नहीं पहुँच पाता !
और कालांतर में भावुकता के वशीभूत कभी-कभी उससे मंजिल तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लगता है ! और उसे इस बात का एहसास तब होता है जब वह चारों तरफ यह पाता है कि भावुकता का स्थान या तो सबसे नीचे है या फिर इसे ज्यादातर मामले में नकारात्मक पहलू माना जाता है ! लेकिन भावुक व्यक्ति इसे तब भी पूर्णतः आत्मसात नहीं कर पाता ! और वह अपनी दुनिया में ही व्यस्त और मस्त रहने की जुगत में लगा रहता है !
किसी की जीत किसी की हार,
यूँ ही बढ़ रहा संसार !!