शुक्रवार, 8 मई 2020

लोकतंत्र के तांत्रिक या पांचवे स्तम्भ?


माफ़ करियेगा और नहीं कर पाइयेगा तो इसे मेरा फ्रस्ट्रेशन या विक्षिप्तता समझ लीजियेगा, मुझे ठीक वैसे ही फर्क पड़ेगा जैसे चुनाव के बाद वोटर को देख कर  जीत जाने वाले नेताओं को पड़ता है.. 

अब सवाल ये कि गोया ये  लोकतांत्रिक तांत्रिक या पांचवे स्तम्भ का मतलब क्या है? ये कौन लोग हैं ? 

बल्कि मेरा तात्पर्य उनसे है ,जो अति चालाक, बहु डिग्री धारी ,अति ज्ञानी, महा मानव सिद्ध करने की कोशिश में अपनी शिक्षा के ज्ञान को अपने अति महत्वाकांक्षा के नीचे दबा चुके हैं, मानो हाथी ने चीँटी का पाँव कुचल दिया हो l

खैर ऐसे तमाम  उच्च ज्ञानी व्यक्तियों से बात करने पर आपको लोकतंत्र की नयी परिभाषा मिलती है, जिसमें लोकतंत्र व्यक्तियों का नहीं विचारों के थोपने की एक पद्धति के रूप में दिखाई देने लगता है l

ऐसे लोगों से थोड़ा भी तार्किक होने की कोशिश करने पर इनके अभिमान पर इतना चोट होता है कि ये सामने वाले के स्वाभिमान का मर्दन करने में कोई कसर नहीं छोड़ते l

लोकतंत्र की नयी परिभाषा के संदर्भ में इन्होंने ऐसा तन्त्र गढ़ दिया है ,जो थोपतंत्र के रूप में बदल चुका है, यह जब तक अपना ज्ञान आप पर थोप कर ताली नहीं बजवा लेंगे तब तक यह थोपते रहेंगे l

इनसे जैसे ही आप आम की बात करेंगे यह इमली के  गुणों का बखान शुरू कर देंगे, फिर आप जब इमली के बारे में बात करेंगे तब तक ये सेब संतरे तक पहुँच जायेंगे, समस्या यहाँ तक भी होती तो चलो अच्छा है, स्थिति तब ज्यादा खराब हो जाती है जब ये आम में से इमली का स्वाद आता है, न साबित करा लें और आप से उस प्रमाण पत्र पर आपके बिना मन के हस्ताक्षर न करा लें l

और उससे भी बड़ी समस्या यह कि इनसे दूरी भी नहीं बनाई जा सकती, आप कोशिश करेंगे, तब तक  इन्हे खबर हो जाती है ,कि आप इन्हें  इग्नोर कर रहे हैं , तो येन केन प्रकारेण यह आप से फिर से चिपक जायेंगे...इन्हें दुश्मन बनाना अच्छा नहीं लगता और मित्र ये स्वयम के भी नहीं होते l

लोकतंत्र की परिभाषा इनके लिए रायता फैलाने से ज्यादा कुछ नहीं,  इनके लिए समस्या यह नहीं कि समस्या क्या है, इनके लिए समस्या यह है कि आप समस्या को समस्या कहते क्यों है? 

भूखमरी,  बेरोजगारी , अपराध, भ्रष्टचार आदि इन्हें समस्या नज़र नहीं लगती , बल्कि इन्हें भी ये लोग लोकतंत्र का अनिवार्य अंग साबित कर के ही मानते हैं, इसके लिए जैसे ही आप इन समस्याओं पर बात करना शुरू करेंगे  कोसना ये आपको कोसना शुरू कर देंगे l

इन्हें सिस्टम की खराबी कभी खराबी नहीं लगती, इन कमियों पर बात करने वालों से इनको देश के भविष्य पर खतरा नजर आता है, ये विभिन्न दलों और विभिन्न रूपों में लगभग हर जगह पाए जाते हैं l

ये ठीक उस बीमा एजेंट की तरह होते हैं  जो किसी की मौत पर दुःख प्रकट करने की जगह मौत के फायदे गिनाने लगते हैं , और अपने विक्रेता शैली का प्रदर्शन करने से भी बाज नहीं आते I  और  ये तब तक ढीठ बने रहते हैं ,जब तक कि उन्हें कोई हिदायत ना मिल जाए l कई बार तो ये लाश को डिजरविंग कैंडिडेट तक साबित कर डालते हैं, और आप अपनी संवेदना को तार -तार होते देखते रह जाते हैं l

ज्ञान का ऐसा असीम संगम देख कर इन्हें लोकतंत्र के तांत्रिक कहना ज्यादा बढ़िया होगा, जो दावा तो हमेशा ही यह करता है कि उसी के पास लोकतंत्र की बीमारियों का ईलाज है l लेकिन  वास्तव में जब तक बीमारी असाध्य न हो जाए तब तक यह अपना दावा छोड़ते भी नहीं, और अगर एक बार  इनको ज्ञान हो जाए कि समस्या अब हाथ से बाहर है, तो इन तांत्रिकों से मिलना ठीक उतना ही असंभव है जितना लोकतंत्र में लोक का तंत्र से मिल पाना l

लोकतंत्र की समस्याओं से निजात पाने से कहीं ज्यादा जरूरी है, इन तांत्रिकों से निजात पाना l इनसे तार्किक होने से ज्यादा जरूरी है सतर्क होना l लोक तंत्र के इन पांचवे स्तम्भों से शायद इतना ज्यादा खतरा है जितना कि बाकी सारे तंत्रों से नहीं l 
सावधान रहें सुरक्षित रहें का नारा शायद इन्हीं तांत्रिकों के लिए बनाया गया है l

इति लोकतंत्र :