मैं रोटी हूँ..
जी सही सुना आपने, एक रोटी l वही रोटी जो कभी एक पुरानी फिल्म में कपड़ा और मकान के साथ आकर उसे एक ब्लॉक बस्टर बना दिया था.. लेकिन मै सिर्फ आटे से नहीं बना हूँ, मैं बना हूँ, किसान के पसीने से उसकी उम्मीद से, उसके जज्बात से खेतों में लहललाते उसकी उम्मीद से भी..
यही नहीं मै वही रोटी हूँ, जो अपनी यात्रा तय कर के किसी फाइव स्टार होटल में एक सौ बीस रुपये में बिक जाता हूँ, बिल्कुल वैसे ही जैसे आज कुछ लोगों का ईमान बिक रहा है..
और मै वह रोटी भी हूँ, जो अपनी यात्रा के ग्लैमर से वंचित रह कर किसी सड़क किनारे रहने वाले किसी इंसान की थाली में नमक और कभी -कभी प्याज के साथ खत्म हो जाता हूँ..
मेरी यात्रा यूँ तो पीसने और जलने से ही शुरू होती है, लेकिन मुझे तब ज्यादा दुख होता है ,जब मेरे इस जलन के बाद मै किसी शादी बारात के कुड़े के ढेर में बिना किसी के भूख मिटाये अपनी यात्रा समाप्त कर देता हूँ. तब खुद को लज्जित और ग्लानि में महसूस करता हूँ..
लेकिन जानते हैं, सबसे ज्यादा मैं कब टूट जाता हूँ, तब ,जब कुड़े के ढेर से मुझे कोई उठा कर धोकर और निवाला बनाता है, दस बीस दिन के भूखे इंसान का निवाला बन के अपने रोटी होने पर मैं खुद रो पड़ता हूँ, तब मैं शर्म करने लगता हूँ कि मैं कैसे देश में, किस परिवेश में आ गया हूँ..और तब मैं जाने क्यूँ महान लोगों के देश में स्वयम के होने पर ही हीन महसूस करने लगता हूँ..
यूँ तो अपने द्वारा बिना भूख मिटाये जाने पर मैं हमेशा ही रोष में रहता हूँ लेकिन पिछले दिनों मैं सबसे ज्यादा दुःखी हुआ था, जब मैं ट्रेन की पटरियों पर पड़ा हुआ था l यह मेरे लिए एक दम नया अनुभव था l अभी तक मैं सड़क के किनारे, होटल के डस्टबिन , कुड़े के पॉलीथीन में फेंका जाकर भी उतना दुःखी न हुआ जितना कि मैं ट्रेन की पटरियों पर पड़ा हुआ था..
यही नहीं मुझ पर कुछ खून के धब्बे थे..
मैं काफी देर तक यह समझ ही नहीं पाया कि मुझ पर यह खून के धब्बे किस चीज के थे... लोकतंत्र की हत्या के, इंसानियत की हत्या के, राजा -रंक के बीच के अंतर की हत्या के, धार्मिक उन्माद की हत्या के, विशेष और अवशेष की हत्या के. या मजदूर और मजबूर के बीच के अंतर की हत्या केके..या फैक्ट्री मालिक के मालिक होने के दम्भ की हत्या के. ?
अभी मैं इन प्रश्नों से विचलित ही था ,तब तक अचानक से सुबह हो गयी, अचानक से मुझ पर कैमरे की फ्लैश चमकने लगी, और मुझ नाचीज पटरी पर बिखरे रोटी की किस्मत पलट गयी, मैं अब लोकतंत्र का हिस्सा बन जाने वाला था, मेरी तस्वीर पर अब डिबेट होने वाला था, चार- चार पांच -पाँच लोग अब मेरे साथ- साथ मेरे बिखराव पर भी बहस करने वाले थे.. मेरे साथ चले और तवे से लेकर मेरी पटरी तक की इस यात्रा तक मेरे साथ रहे सहयात्रियों पर भी बहस हो रही थी..
लेकिन यह क्या, कुछ ही देर में बड़े बड़े लोग आ गए, कोई मंत्री कोई अभिनेता सब, वो मेरे सह यात्रियों के शवों को देख कर बहुत दुःखी थे.. किसी की नजर में मेरे साथ मेरी इस यात्रा वाले बेवकुफ थे जिनको यह नहीं नहीं पता था कि उन्हे कहाँ सोना बैठना चाहिए.. तो किसी की नजर में वे देश के निर्माता थे, किसी की नजर में वे योद्धा थे जिन्होंने अपनी जिजीविषा को आगे रखा, तो किसी की नज़र में वे कायर थे जो लड़ नहीं पाए और मुझे साथ लेकर उस तरफ चल दिये जहाँ से वह मेरे लिए ही बड़े शहर की तरफ निकल आये थे और आज वापस वहीं जा रहे थे..
मुझे नहीं पता था कि मेरे साथ मुझे ढोकर लाने वाले लोगों की लाश को लोग साथ लेकर जाने वाले थे... अचानक से मैंने देखा कि उनको उठा कर लेकर जाने लगे लोग, उन्हीं पटरियों पर उनके लिए एक ट्रेन लगाई गयी.. उन्हें उस पर रखा गया.. अब मैं खुश था कि पैदल चलने वालों की यात्रा अब ट्रेन से होगी... मैं भी थक गया था पटरियों पर चलते- चलते ... मुझे भी उम्मीद थी कि अब मुझे भी कोई उठायेगा लाद देगा मेरे सह यात्रियों के साथ... मैं अंत समय तक उनके साथ चलना चाहता था...
लेकिन यह क्या कोई ध्यान ही न दिया.. मैं वहीं पड़ा था उन्हीं पटरियों पर.. भीड़ कम हो रही थी..मैं डर रहा था.. अपने अकेले हो जाने पर... मुझे दुःख हो रहा था गरीब की रोटी होने पर.... मुझे अफसोस हो रहा था अपनी किस्मत पर...लेकिन मैं रो रहा था उन सह यात्रियों के साथ छोड़ जाने पर और अफसोस हो रहा था... कि मैं उनके काम नहीं आ पाया और बिखर गया...
मैं अब भी वहीं पड़ा हूँ, उन पटरियों में..मैं खत्म हो जाऊँगा सूख कर.. काश कोई मेरी नीलामी ही करा देता... कोई तो खून से सने मुझ रोटी की वाजिब कीमत लगाता...
मैं नहीं जानता अपना भविष्य.. लेकिन मैं अब जिंदा रहूँगा... फेसबुक, ट्विटर पर और अब मैं भूख का नहीं चुनाव का मुद्दा हूँ...
मैं रोटी हूँ... जलना मेरी किस्मत है... मैं जिसे नहीं हासिल उसका ख्वाब हूँ... मैं सवाल हूँ.. और मैं ही हर सवाल का जवाब हूँ...
बस यही कहूँगा जाते जाते... मुझे खून के धब्बे से डर लगता है अब.....