समर शेष है , और विशेष है ,
विध्वंसों के अवशेषों पर ,
सिर्फ रुदन है ,और द्वेष है,
ऐ मानव के चरम पुँज ,
तुम कब तक होश में आओगे ?
विध्वंसों के अवशेषों पर ,
सिर्फ रुदन है ,और द्वेष है,
ऐ मानव के चरम पुँज ,
तुम कब तक होश में आओगे ?
मानवता के राग अलापे,
मनुज मात्र को तुम भरमाके ,
कब अश्कों की बारिश रोकोगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे ?
कब तक होश में आओगे ?
मनुज मात्र को तुम भरमाके ,
कब अश्कों की बारिश रोकोगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे ?
कब तक होश में आओगे ?
यहाँ समाज के नाम युद्ध का,
लाशों का उपहार दिया बस ,
जिसने कुछ भी कहा यहाँ तो,
धड़ से सिर उतार दिया बस,
लाशों का उपहार दिया बस ,
जिसने कुछ भी कहा यहाँ तो,
धड़ से सिर उतार दिया बस,
कब तक तुम इस तरह लहू की,
नदियाँ यूँ ही बहाओगे ,
कब तक स्वार्थ के पन्नों से,
नफरत के शब्द मिटाओगे ,
नदियाँ यूँ ही बहाओगे ,
कब तक स्वार्थ के पन्नों से,
नफरत के शब्द मिटाओगे ,
कब तक शोणित से सींच के ,
नफ़रत के वृक्ष बढ़ाओगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे
कब तक होश में आओगे ,
नफ़रत के वृक्ष बढ़ाओगे ,
कब जख्मों को सहलाओगे
कब तक होश में आओगे ,
देवी कह के जिसको पूजा ,
उसका भी नही सम्मान किया ,
वसुधा को लाशों की चादर से,
ढँक कर के अपमान किया ,
उसका भी नही सम्मान किया ,
वसुधा को लाशों की चादर से,
ढँक कर के अपमान किया ,
ऐ मानव तुम धर्मवीर हो ,
ऐ मानव तुम कर्मवीर हो ,
थोड़ा सा संयम भी रखो ,
यूँ शीघ्र तुम न अधीर हो ,
ऐ मानव तुम कर्मवीर हो ,
थोड़ा सा संयम भी रखो ,
यूँ शीघ्र तुम न अधीर हो ,
इतिहास के पन्नों पर कब तक ,
काले अक्षर में लिखे जाओगे ,
तुम ऐ मानवता के चरम पुँज,
एक बार फिर तुम्ही बता दो ,
कब तक आखिर , हाँ हाँ कब तक,
कब तक होश में तुम आओगे,
कब जख्मों को सहलाओगे ??
काले अक्षर में लिखे जाओगे ,
तुम ऐ मानवता के चरम पुँज,
एक बार फिर तुम्ही बता दो ,
कब तक आखिर , हाँ हाँ कब तक,
कब तक होश में तुम आओगे,
कब जख्मों को सहलाओगे ??
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