वक़्त की शाख पे टूटे जो उम्मीद कभी,
खुद की उम्मीदों को कभी गिरने न दिया ,
खुद की उम्मीदों को कभी गिरने न दिया ,
हजार बार खुद गिरा ,खुद को उठाया मैंने ,
सफ़र में खुद को कभी भी बिखरने न दिया !
सफ़र में खुद को कभी भी बिखरने न दिया !
कभी खुद की जिद में तोडा खुद को बहुत ,
जिन्दगी की धुप ने अक्श को निखरने न दिया ,
जिन्दगी की धुप ने अक्श को निखरने न दिया ,
"माहिर " जीता नही जिन्दगी किताबों की तरह ,
पर जिन्दा रिश्तों की जिल्दों को बिखरने न दिया !
पर जिन्दा रिश्तों की जिल्दों को बिखरने न दिया !
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