कुछ इस क़दर मिरा भी किरदार यूँ रहा,
जम्हूरियत भी मेरी ,गुनाहगार भी मैं रहा,
यूँ हाथों में खूं से सना खंजर भी नहीं था,
जाने क्यूँ फिर यूँ तलबगार भी मैं रहा !
खबरनवीसों ने छापी कहानी सियासत की,
हर हर्फ़ मैं ही था ,अख़बार भी मैं रहा !
यूँ खूब बचाया हमने इस कूच-ए-दरिया में,
उस बार भी मैं ही था और इस बार भी मैं रहा !
जम्हूरियत भी मेरी ,गुनाहगार भी मैं रहा,
यूँ हाथों में खूं से सना खंजर भी नहीं था,
जाने क्यूँ फिर यूँ तलबगार भी मैं रहा !
खबरनवीसों ने छापी कहानी सियासत की,
हर हर्फ़ मैं ही था ,अख़बार भी मैं रहा !
यूँ खूब बचाया हमने इस कूच-ए-दरिया में,
उस बार भी मैं ही था और इस बार भी मैं रहा !