रविवार, 24 मई 2020

वट वृक्ष


सिकुड़ चुके हैं, 
वट- वृक्ष, 
बोन्साई हो गये हैं, 
ये बड़े पेड़, 
सिकुड़ गए परिवार, 
सिकुड़ गए दायरे, 
और सिकुड़ चुके लोगों को देख, 
ये भी सिकुड़ गए हैं, 
शहर के बाहर, 
या फिर गाँव के  किसी, 
खलिहान में हुआ करते थे, 
अभी भी हैं कहीं- कहीं 
बाप दादा 
जहाँ अभी 
हिस्सा हैं परिवार के, 
वहाँ हैं ये बरगद , 
और उनकी जड़ें भी

लेकिन शहर की तरफ, 
बढ़ते हुए  , 
इन पर असर हो गया, 
शहरीपन का, 
अब ये  गमले में उगते हैं, 
फ्लिपकार्ट और अमेजन पर, 
नीलाम होने लगे हैं, 
बिग बाज़ार में बिकने लगे,
और फिर दम तोड़ने लगे हैं, 
किसी फ्लैट के, 
किसी कॉरिडोर में, 
किसी किनारे के, 
प्लास्टिक वाले गमले में, 
और गिने जाने लगे हैं इनके पते, 
हर वट-सावित्री वाले त्योहार पर, 

और
सिमट चुके हैं ,
गाँव भर को छाँव देने वाले, 
बरगद अब सजावटी हो गए हैं, 
और ढूंढने लगे हैं, 
छाँव खुद  ही !