गुरुवार, 7 मई 2020

कोरोना का डर और मदिरालय की पीठ पर सवार भारतीय अर्थव्यवस्था

नशे में कौन नहीं है यहाँ, बताएं जरा.... 
नशा शराब में होती तो नाचती बोतल.... 

बात शुरू करते हैं कि शराब क्यूँ जरूरी है, लेकिन इससे पहले सभी मदिरयोद्धा , मधु शुर आदि लोगों  के  चरणों में सादर प्रणाम, साथ ही यह अफ़सोस कि हम जैसे तमाम तुच्छ लोगों ने उन्हें बेवड़ा कहा, दारूबाज कहा, पियक्कड, नशेड़ी कहा जिनकी अहमियत सिर्फ हमारे अर्थ शास्त्री और सम्मानित नेता गण ही समझ पाए.. 

और मैं सम्पूर्ण भारत की तरफ से उन ठेके पर युद्धरत योद्धाओं  के चरणों में नमन करता हूँ और सैल्यूट करता हूँ.

साथ ही मै यह चाहता हूँ कि सभी शराब योद्धाओं  को आधार कार्ड के तरह का ही एक कार्ड बनाया जाए और उन सभी को  यह कार्ड लॉकडाउन के दौरान ही हर ठेके के पास किसी बड़े अफसर के द्वारा दिया जाए और साथ ही इस कोरोना युद्ध में इस अभुतपूर्व योगदान के लिए  उन्हें पर्शस्ति पत्र भी दिया जाए.

यही नहीं इस युद्ध में जिस हिसाब से जो जितना बड़ा योगदान दे उसे उतना बड़ा सम्मान दिया जाए. जिसका चुनाव ठेके के पर्चियों और नाले में पड़ने की आवृत्ति और गाली की मात्रा के आधार पर किया जाए.
और उन्हें कुछ चक्र भी प्रदान किया जाए मसलन शराबवीर चक्र, महाशराब वीरचक्र, दारू चक्र आदि.. 

साथ ही इनके लिए हर क्षेत्र के नौकरियों में उचित आरक्षण दिया जाए और यह सिर्फ उन्हीं के लिए लागू हो जो इस लॉकडाउन के दौरान  वीरता दिखाएँ.. 

साथ ही अतिग्रहण / अति मदिरापान की अवस्था या किसी अन्य दुर्घटना में वीरगति को प्राप्त करने पर उन्हें 210 तोपों की सलामी दी जाए और उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाए.

इसके साथ- साथ हर ठेके वाले चौराहे पर उनकी बड़ी मूर्ति लगाई जाए और उस चौराहे का नाम उसी योद्धा के नाम पर रखा जाए.. और फिर उनके परिजनों के नाम आजीवन दारू पीने के लिए एक निश्चित रकम हर माह उन्हें दिया जाए जो सिर्फ ठेके पर मान्य हो और उसके आवंटन हेतु एक अलग कोष बने जिसकी देख रेख कुछ खास मंत्रियों को ही दिया जाए.. खास मतलब खास.. 

भारतीय अर्थव्यवस्था में इतने क्रांतिकारी परिवर्तन को देखते हुए कई देशों ने यूँ तो अपने यहाँ इस पर शोध करना शुरू कर दिया होगा , लेकिन इस गूढ़ तकनीकी का  इस्तेमाल  वह ना कर ले इस पर भी विचार करना होगा इसे पेटेंट कराना होगा और तुरन्त कार्यवाही करते हुए इसे हर डिग्री डिप्लोमा, माध्यमिक और उच्च कक्षाओं में अनिवार्य कर देना चाहिए और हर विद्यालय में इसके लिए अलग से बार लैब बनाया जाना चाहिये.. 

साथ ही साथ एक विश्वस्तरीय मदिर योग क्रिया और अनुसंधान केंद्र खोला जाए और तब वहाँ ट्रेनिंग दी जाए.

क्योंकि बनाने के लिए तो तमाम विश्व विद्यालय  पहले से हैं जो अच्छा कार्य कर रहे लेकिन पीने की तकनीकी सिखाने हेतु एक संस्थान अब अति आवश्यक है.

साथ ही फिलहाल घरों में दुबके लोगों तक  वेबिनार के माध्यम से हर शहर  के बड़े पियाक ( पियक्कड)  के द्वारा शराब पीने के तकनीकों और फायदों का प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए ताकि घरों में छिपे डरपोक और कोरोना से  भयभीत लोगों को हौसला और प्रोत्साहन मिले साथ ही साथ उन्हें इस वेबिनार के लिए उचित सर्टिफिकेट भी मिले! 
यही नहीं यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जो भी इस शराब पीने का बहिष्कार करे या शराब पीने के खराबी पर बात करे तो उसे कम से कम छः महीने सश्रम कारावास की सजा दी जाए..  ताकि उसे देश की अर्थव्यवस्था सनद रहे.. 

यही नहीं कोरोना से लड़ने वाले डॉक्टर और नर्सों पर बरसाए फूलों के बाद अगला कदम हर ठेकों पर फुल बरसाने का इंतजाम किया जाए और इसमे वायुसेना के सम्पूर्ण सैनिकों का इस्तेमाल किया जाए ताकि ठेके की संख्या अस्पताल से ज्यादा होने के कारण सब ठेकों को कवर किया जा सके और हर सैनिक इन योद्धाओं के पराक्रम से सीख ले और गौरवान्वित् महसूस करे.. 

कहते हैं परिस्थियाँ इंसान के ज्ञान का कारण बनती हैं, और अभी सम्पूर्ण बुद्धिजीवी वर्ग के चिंता का विषय यह होना चाहिये कि हर शहर में कितने कारखानों को बंद कर दिया जाए और उनके बदले में कितने ठेके खोले जाये ताकि कोरोना जैसी महामारी के  आने पर भी हम अपने विश्व की पहली अर्थव्यवस्था वाले  स्वप्न पर जुड़ें रहें... 

चूँकि संकट काल में सबसे ज्यादा दोहन हमारे  पुलिस कर्मियों का होता है , और चूँकि ठेके पर पियक्कड  लोगों को संभालने में उन्हें निश्चित रूप से परेशानी हो रही होगी और चौराहे पर इन्ही लोगों को पीटने के बाद ठेके पर उनसे ही सोशल डिस्टेंसिनग का पालन करने के साथ बोतल खरीदने को कहने पर उन्हें जरूर ग्लानि हो रही होगी, तो उन्हें भी इस ग्लानि से मुक्ति हेतु मुहल्लों में बोतल पहुंचाने के कार्य में भी लगाया जा सकता है.. 

और सबसे जरूरी बात कि हर चौराहे पर उन तकनीक का  प्रयोग किया जाए जिससे यह पता चल सके कौन व्यक्ति बिना पिये या बिना बोतल के सड़क पर चल रहा है.. और जिस व्यक्ति के पास बोतल न मिले या मुह से दारू की खुशबू ना आये  या फिर  वह किसी भी अन्य जगह जैसे अस्पताल आदि  से आता मिले तो  उसे यह कह कर कि वह  बहाने बना रहा है ,उसे सौ डण्डे लगाने के बाद ही छोड़ा जाए ... हर सड़क पर लॉक डाउन तक "सिर्फ पियक्कड या नेता के लिए " लिखा बोर्ड भी लगवा देना चाहिए.. 

गरीब या ऐसा व्यक्ति जो रिक्शा चलाने के बाद रोज शराब पी रहा हो लेकिन अब  शराब ना खरीद सके या फिर कोई मजदूर जो सूरत , दिल्ली से बिहार जैसे दारू मुक्त जगह पर जा रहा हो उसे भी कड़ी से कड़ी सजा दिये जाने का प्रावधान लागू हो.. ऐसे व्यक्ति जो इस संकट काल में  अर्थव्यवस्था  को पटरी पर लाने में असमर्थ हों उन्हें निश्चित रूप से हमारे महान भारत के सड़क की पटरी पर भी चलने का अधिकार नहीं होना चाहिए... 


इस महान क्रांतिकारी कदम के ऊपर कविता ,कहानी ,लेख लिखने वाले के लिए भी सीधे मधु साहित्य अकादमी पुरस्कार, दारू रतन,  छद्म पुरस्कार आदि दिया जाना चाहिये, साथ ही बच्चन जी की  रचित मधुशाला  को धार्मिक ग्रन्थों में शामिल किये जाने के लिए केबिनेट मीटिंग बुला कर अध्यादेश  लाया जाना चाहिए... 
और फिर मधुशाला की एक कॉपी आगामी चुनाव में  अध्धा, पौवा के साथ  बांटी जानी चाहिए.. 


अंत में गुजारिश  अगर मैं महिमा मंडन के उपरोक्त लेखन में असफल हुआ हूँ तो भी   मेरे जैसे लोगों को भी नशे में ही हजार गाली दिया जाना चाहिए कि जब सम्पूर्ण देश अर्थव्यवस्था के सुदृढ करने वाले एक मात्र राम बाण की खोज कर चुका हो तो  इस महान खोज की गौरव गाथा में असफल कैसे.. 


बाकी हां मिलते हैं विश्व के प्रथम अर्थव्यवस्था में जल्दी ही, कोरोना से देश अगर तबाही से बचा तो ...  सिंहासनों के के हसीं स्वप्न और महत्वाकांक्षाएँ  राष्ट्र हेतु अक्सर कब्रिस्तान साबित होती आयी हैं  है..चाहें तो इतिहास के पन्ने पलट डालें.. 




अरे नींद टूट गयी... 

और गाना बजने लगा  

सबको मालूम है मै शराबी नहीं... 

और मुझे सुनाई दे रहा है . . . . . . 
 
अर्थव्यवस्था पटरी पे ना लौट पाए तो कोई क्या करे... 

वह कोरोना से मरे या फिर दारू से मरे.. 
सड़क पर पैदल चल के मरे तो भी कोई क्या करे .. 

सबको मालूम है वह शराबी नहीं.. 
जो भूख से तड़प के मर जाए तो कोई क्या करे.. 




©Rajeev Kumar Pandey "माहिर "

देश हित में अपने 90 प्रतिशत मित्रों से माफ़ी के साथ