शुक्रवार, 12 जून 2020

मरे हुए आदमी की कविता


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आदमी तो आदमी होता है,
जब जिंदा होता है,
लेकिन जैसे ही मरता है,
आदमी आदमी नहीं रह जाता,
वो कुछ हो जाता है,
किसी के लिए सामान,
किसी के लिए सम्मान,
किसी के लिए हिन्दू,
किसी के लिए मुसलमान,
किसी के लिए दलित ,
किसी के लिए सवर्ण,
किसी के लिए ब्राह्मण ,
किसी के लिए
ठाकुर ,यादव, आदि, आदि,
लाश की तो पार्टी भी बदल जाती है,
वो कभी इस पार्टी का ,
कभी उस पार्टी का,
हो जाता है ,
लेकिन आदमी, आदमी नहीं रहता,
जिंदा रहता है तो,
किसी का अपना सगा,
किसी का शत्रु होता है,
लेकिन मौत के बाद,
आदमी एक मुक़म्मल लाश भी नहीं रहता ,
गिद्धों के ठहाकों के बीच में,
आदमी सामान रह जाता है !

नग्न पाँव के छालों से

सिकन्दर का गुरुर भी यहाँ टूट के बिखरा,
सियासत दारों तुम ना बचोगे ऊँची दीवालों से !
हो जाओगे आखिर महरूम तुम भी निवालों से,
बस दो-दो हाथ नहीं करो, नग्न पाँव के छालों से !