अपराध हमारे चारों ओर है ,और पाताल लोक भी हमारे इर्द गिर्द ही कहीं l और इस वजह से इसे षड्यंत्रों और अपराध की गाथा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है l
अपराध की गाथा बिना गाली के लिखी तो जा सकती है ,लेकिन उसे कहने के लिए ये गाली नितांत आवश्यक होती है, और परदे पर उसे दिखाने के लिए यह लाजिमी हो जाता है l
प्रॉशित रॉय और अविनाश अरुण धावरे ने सुदीप शर्मा लिखित अपराध की गाथा को कितने संजीदा तरीके से कहलवाया है ,कि आप अपराध के तिल्सम में डूब जाते हैं l
एक अपराधी के प्रति आप न्यूट्रल महसूस कैसे करने लगते हैं आपको पता ही नहीं चलता l
बात करते हैं कहानी की..
दिल्ली की ऐसी तस्वीर जिनसे हर कोई रोज रुबरु होता है ,लेकिन वह उस पर ध्यान देने से बचना चाहता है.. या फिर ध्यान नहीं देना चाहता.. आप रोज ऐसे बचपन को देखते हैं ,जो आगे जाके चिन्नी बन जाने का रास्ता अख्तियार करते हैं l
कॉर्पोरेट अपराध या अपराध का कॉर्पोरेट कैसे और कितना फैला हुआ है ,इसे महसूस करते हुए आप कुछ अजीब सा महसूस करते हैं, एक क्राइम को कैसे किसी और रंग में बदला जाता है, इसे आप देख लेते हैं l
इसे हाथी राम चौधरी की कहानी कहें या संजीव मेहरा की या फिर विशाल त्यागी की यह जवाब तो आप देख कर महसूस कर पाएंगे l
अपराध की दुनिया में हर एक अपराधी का एक अतीत होता है l वह हैवान में बदलने से पहले उसी अतीत का हिस्सा होता है, या फिर शौक से उसे चुनता है..l लेकिन हर अपराधी का एक ऐसा कोना होता है , जिस कोने में वह अपराधी नहीं होता, चाहे वह चिन्नी हो, तोप सिंह हो, हथौड़ा त्यागी हो या फिर चन्दा हो l
यूँ कहें कि सिस्टम से अपराध है ,या फिर अपराध से सिस्टम या फिर दोनों एक दूसरे के सहारे चलते हैं, इसको समझाने की कहानी है पाताल लोक l
एक तरफ हाथी राम चौधरी है ,जो इस पाताल लोक में वराह बन कर कूद पड़ता है, और पाताल लोक की गहराई में उतरता जाता है, और इस महाजाल के परतों को उधेड़ते हुए एक तरफ खुद के वजूद से लड़ता है तो एक तरफ अपनी पारिवारिक समस्याओं से l
उसके आंतरिक द्वन्द और कर्तव्य निष्ठता को उसके एक डायलाग से समझा जा सकता है, जब चित्रकूट में वह कहता है
" सर आधी जिंदगी बाप की आँखो में देखा है कि उसका बेटा चुतिया है, बाकी की जिंदगी में बेटे की आँखों में नहीं देखना चाहता कि उसका बाप चुतिया है ! "
हाथी राम के इस धर्म युद्ध में उसकी पत्नी और उसके बेटे का होना हाथी राम के दूसरे पक्ष को दिखाता है जिसमे एक तरफ उसका बेटा भी अपराध की दुनिया का हिस्सा बनते-बनते बचता है l गुल पनाग ने पत्नी के किरदार को बहुत बेहतरीन तरीके से निभाया है..
जयदीप अहलावत हाथी राम का किरदार निभाते हुए आपको यह एहसास कराता है कि आप हाथी राम को देख रहे जयदीप को नहीं l
दूसरी तरफ संजीव मेहरा प्रतिनिधि है, तथाकथित स्वर्गलोक का l जो सिस्टम के खेल और खिलाडी वाले पैटर्न में अपनी महत्वाकांक्षा को ज्यादा अहमियत देता है l संजीव मेहरा के रूप में तथाकथित बड़े लोगों का छोटापन और न्यूज़ रूम के बड़प्पन को तार -तार करते हुए सिस्टम के खेल को दिखाया गया है l संजीव मेहरा के हमेशा ऊपर रहने की ख्वाहिश का शिकार होती है उसकी पत्नी डॉली l
डॉली का किरदार निभाते हुए स्वस्तिका के शांत अभिनय को आप साथ लेके चलते हैं, और संजीव का स्वस्तिका के प्रति उदासीनता और संवेदन शीलता का शून्य होना, स्क्रीन पर डॉली के प्रति आपकी संवेदनशीलता को मजबूत करते जाता है l इस तरह के रोल हमेशा ही चैलजिंग रहते हैं, और इस वजह से स्वस्तिका मुखर्जी को पुरे नम्बर मिलने चाहिए..
यहाँ संजीव मेहरा के रूप में नीरज कबी ने भी बाजी मारी है, संजीव मेहरा की ऐंठन ही नीरज के अभिनय की सफलता है l
अब जब गाथा अपराध की हो तो बात हथौड़ा त्यागी की भी जरूरी है, हथौड़ा त्यागी और विशाल त्यागी में कौन बड़ा है यह जानने के लिए आपको परिवर्तन के दौर से गुजरना होगा..
विशाल त्यागी के रूप में अभिषेक बनर्जी को देखते हुए आप कई बार महसूस करते हैं कि आप किसी रंग मंच के सामने दर्शक दीर्घा में हैं ,जहाँ मंच पर एक अभिनेता खड़ा है बिना कुछ कहे l लेकिन उस पर पड़ती लाइटों के बदलने पर भी वह खुद को संभाले रहता है l और अंत में आप को उस खलनायक बने नायक से प्रेम हो उठता है और अंत में वह दर्शकों का स्टैंडिंग ओवेशन लूट लेता है .. एक बेहतरीन खलनायक को और क्या चाहिए..
सस्पेंस की कहानी कहें तो कुल मिलाकर कहानी ऐसी कि एक मिनट नजर हटी तो आप पटरी से उतर जायेंगे