शनिवार, 30 मई 2020

दर्द किधर है ?

छिपाना क्या है,छापना क्या है,
ये हर अख़बार को पता है,
लूटना किसको है, लूटना कैसे है,
ये हर सरकार को पता है।
किधर है खामोशी ,चीख किधर है ,
ये बात हर दीवार को पता है,
वो मुस्कुराता तो है ,
मौत से लड़कर,
दर्द किधर है,
ये सिर्फ बीमार को पता है।

सभी के हाथ खंजर है

जो महफ़िल उठ गई एक बार ,
कोई दिखाई नही देता ,
कैसे सब चले गए ,
क्यूँ दिखाई नही देता
सभी के हाथ में हैं खून,
सभी के हाथ खंजर है,
सभी खामोश हैं चुपचाप,
पर कोई सफ़ाई नही देता !

आईने से डरता हुँ

तस्वीरों ने दिया धोखा,
मै आईने से डरता हुँ।
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जो झूठ बोला खुब ,तो सर पे बैठाया सबने ,
जो बोल दिया सच तो गुनाहगार हो गया।


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गफलतों में हम रहे और वायदे में खो रहे,
कायदे के लोग जो थे, फ़ायदे में वो रहे ।।


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सब बिके ,मैं ना बिका, जिस दिन सरे बाज़ार में,
देखने लगे हैं लोग तब से , कमियाँ मेरे क़िरदार में ।।



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बेचते- बेचते ही बाजार खुद बिकने लगा,
कीमतें घट गयीं, अख़बार खुद बिकने लगा!


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करना क्या है मुझको अख़बार से,
हूँ मैं वाकिफ अपने किरदार से ।।


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