अप्रतिम
अभ्युत्थान से ऊपर,
मै बढ़ रहा हूँ आसमान से ऊपर,
स्वप्नद्रष्टा ही सही ,
पर समय के पथ पर ,
बढ़ तो रहा हूँ अरमान से ऊपर !
पथ रोकता है ,
फिर टोकता है ,
और पूछता है,
मेरे सफ़र का चरम क्या है ?
और फिर ,
और फिर जब देखता है ,
मुझे अनवरत बढ़ते हुए ,
तो हौसला देता है मुझे ,
और कहता है ,
ऐ पथिक तू चल ,
और चलता जा ,
क्युंकि मेहनतकश के लिए ,
सिर्फ मेहनत ही है ,
प्रार्थना और भगवान से बढ़कर !
अभ्युत्थान से ऊपर,
मै बढ़ रहा हूँ आसमान से ऊपर,
स्वप्नद्रष्टा ही सही ,
पर समय के पथ पर ,
बढ़ तो रहा हूँ अरमान से ऊपर !
पथ रोकता है ,
फिर टोकता है ,
और पूछता है,
मेरे सफ़र का चरम क्या है ?
और फिर ,
और फिर जब देखता है ,
मुझे अनवरत बढ़ते हुए ,
तो हौसला देता है मुझे ,
और कहता है ,
ऐ पथिक तू चल ,
और चलता जा ,
क्युंकि मेहनतकश के लिए ,
सिर्फ मेहनत ही है ,
प्रार्थना और भगवान से बढ़कर !
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