याद है तुमने कहा था ,
हाथों की लकीरों में कुछ नही है ,
और मै थाम के बैठा रहा था
तुम्हारी हाथों को ,
कि तुम्हारी हाथों की लकीरों में ,
कुछ भर दूँ ,
थोडा स्नेह ही सही ,
मेरे पास कुछ भी तो नही ,
तुम्हे देने को ,
पर फ़िर भी ,
जब भी सिहरन महसूस होगी ,
या फिर ये एहसास ,
कि हाथों को दबाये कोई ,
तो मिलूंगा अतीत के झरोखों में ,
स्नेह के साथ,
बस यूँ ही !!!....
प्रेम नही
एक एहसास बस ,
और कुछ भी तो नही ,
बस यूँ ही !!