बुधवार, 17 जून 2020

रेलगाड़ी

जाने कितनी स्वप्न साधना,
लेके चलती है रेलगाड़ी,
इन पहियों पर हजारों
ख़्वाब इधर से उधर होते हैं,
एक साथ ,
हजारों मिलन और विदा ,
के बीच का पड़ाव लिए ,
चलती है ट्रेन !
मंथर सी चाल !

समंदर में चलता नाव

कोई पन्ना मानो बिखरा है ,
कहीं आस पास ही,
समंदर से हाथ दो हाथ करते हुए,
हिम्मत और जज्बात के साथ,
खुद से ही है युद्ध,
एक खोज खुद के अंदर,
अनवरत जारी है युद्ध,
खुद को पाने के लिए ,
जो गुम सा लगता है अब कभी,
लेकिन जारी है जंग,
जब तक पुनः पा न लें खुद को !
यूँ मानो समंदर में चलता हुआ नाव कोई,
पा जाए किनारा ..