एक दिन सोचनी दुनिया के चिंता से दूर होकर के सोये के ,
बैठल रहनी एक दिन त एगो आवाज आइल रोये के ....
रउओ सुनी लोगिन ई रोये के आवाज कहा से आवता ,
जरुर कौनो बाप के ओकरा बेटी के चिंता सतावता ,
बेच दिहल जे अपना तन के
रेहन रखले बा अपना मन के
सिर्फ एगो वचन के बदला में
लेले बाड़े कुछ सिक्का कर्ज पर उ अपना कफ़न के बदला में
देख के बाबूजी के ई दसा
बेटी के मन में एगो बात आइल
का खाली एही खातिर जुटा के रखले बाडन बाबुजी जिन्दगी भर पाई पाई ??
का नारी बनल बाड़ी सिर्फ सेज और दहेज़ के खातिर ??
आखिर काहें ????
आखिर काहें गिरवी राखेलें
सब बाप अपना तन-मन के सिर्फ कुर्सी- मेज के खातिर ?
बेटी के मन में समाज के खातिर नफरत भर आइल
ओकरा बस सूली-फांसी ही नजर आइल
अउर फिर हो गइल एगो नारी कुर्बान दहेज़ के खातिर
चन्द कागज के टुकड़ा अउर कुर्सी मेज के खातिर ......
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