लोग बदलते हुए,
आदमी हो गए,
कीड़े से शुरू हुई थी,
जिंदगी शायद,
जो बच गया वो बच गया,
आने वालों के लिए,
साथ जो लाया था,
उसे छोड़ दिया ,
आने वालों के लिए,
आज फिर बदल रहे हैं,
आदमी से कीड़े हो गए हैं,
सामाजिक प्राणी है इंसान,
ऐसा भी लिखा था कहीं,
नागरिक शास्त्र की ,
किसी किताब में उसी समय
जब विज्ञान की किताब में,
डार्विन को पढ़ रहे थे ,
आज इंसान
सामाजिक जानवर हो गया है,
शायद!
बदलाव को देख कर,
आज डार्विन,
फ़ांसी लगा लेता,
विकासवाद को इतना भय में देख कर!
डार्विन की मौत पर,
गूंज जाती तालियाँ!
डार्विन बच जायेगा ,
अगर कह देगा,
कि इंसान और कीड़े में कोई फर्क नहीं,
फिर नहीं होगी मौत उसकी,
वरना निश्चित है,
डार्विन की मौत!
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