मंगलवार, 7 जुलाई 2020

बताओ उसको किसने मारा ?

मौत की आदत है साहब,
यही तो सियासत है साहब,
श्वेत कपड़े चमक रहे हैं,
लहू की होली खेल कर,
बड़ी भवन में मोल होगा,
गिने जाएंगी लाशें फिर,
बहस होगी, खेल होगा,
सच बोलेगा,उसे जेल होगा,
कागजों में पैदा होकर,
कागजों में मर गए,
जो कुचलने से बचे,
रोत- बिलखते घर गए,
हाथ जोड़े आएंगे वो,
दांत फिर निपोरेंगे,
आपकी फिर उँगलियों,
के छाप वो बटोरेंगे,
आप यूँ मरते रहेंगे,
आप यूँ डरते रहेंगे,
आप जो ना सम्भले,
तो खेल वो करते रहेंगे
देश की बातें करेंगे,
राष्ट्र हित सिखाएंगे वो,
भाई का सड़क पे मरना,
आप फिर भूल जायेंगे,
देश तो सबको है प्यारा,
देश भक्ति कर्तव्य हमारा,
दया बस इतनी दिखा दो,
बस मुझको ये बता दो,
उसकी खातिर चौडी है छाती
सीमा पर जिसे दुश्मनों ने मारा
पर भूख से जो मरा सड़क पे
बताओ उसको किसने मारा ??

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

ख्वाहिश है

ख्वाहिश  है ,
कि तुम फूल बन जाओ,
मै कांटा  बन जाऊं ,
तुम अँधेरा बन जाओ ,
मै सन्नाटा    बन जाऊं
ख्वाहिश  है,
कि तुम गीत बन जाओ ,
मै संगीत बन जाऊं ,
तुम प्रीत बन जाओ ,
मै तुम्हारा मीत बन जाऊं ,
 
ख्वाहिश  है ,
तुम सवाल बन जाओ,
मै जवाब बन जाऊं ,
तुम नींद बन जाओ ,
और मै ख्वाब बन जाऊं ,
 
ख्वाहिश है .
कि तुम्हारे   नर्म पांव   ,
कभी काँटों पे पड़े ,
कभी तुम्हारे  धडकन की आहट,
मरे हृदय के सन्नाटे  पे पड़े ,
 
ख्वाहिश है ,
तुम्हारे पांव को छू के ,
मेरे कांटे निकालने की सिहरन ,
तुम्हारे अंतर्मन तक पहुंच जाये ,
और मन से उठे गीत,
तुम्हारे हृदय को स्पर्श कर जाएँ,
और हम तुम्हारे मनमीत हों जाएँ !!!!

ख्वाहिश है,
कि तुम हाथों में हाथ रखो,
और हम सफ़र पे चलते हुए खो जाएँ,
तुम्हारी गोद हो ,और उँगलियाँ बालों में हों,
और  बस उनींदी सी  नींद के आगोश में हम सो जाएँ !!

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

सवाल और जिन्दगी


वो मूरत कैसी थी ?
वो जाने कैसा था पत्थर ?
वो सूरत कैसी थी ?
इसका ना मिला उतर ,
 
वो आँख कैसी थी?
वो थी कैसी चमक ?
वो खुशी कैसी थी ?
सुन खो गयी दमक .
 
वो सवाल कैसे थे  ?
वो जवाब कैसे थे ?
वो हाल कैसे थे ?
सुन  बेहाल हों गये .
 
उसके कुछ  सवालों के,
मैंने ढूढे जवाब खूब ,
अपने सवालों में,
मै उलझा रहा  खूब ?
 
बस इन सवालों से ही ,
चल रही है जिन्दगी,
गम की सेज पे मुस्कुरा के ,
पल रही है ये अभी !!

बुधवार, 1 जुलाई 2020

किसको खुदा और किसको तुम भगवान कहते हो ??



कभी हिन्दू तो कभी खुद को मुसलमान  कहते हो
जो कुछ बोलता नही उसे खुदा तो कभी तुम्ही भगवान कहते हो ?

जो खून से खेलता  है उसे तुम हैवान कहते हो
तो फिर किस वजेह से खुद को तुम इन्सान कहते हो ?

किसी पत्थर का कोई धर्म नही होता ,
चाहो शिव मान कर पूजा कर लो या फिर इसे मस्जिद के गुम्बद पे लगा दो ,

मरने के बाद किसी को  स्वर्ग और जन्नत में भेजने वालों
क्यूँ कहते हो कि लाश को  दफना दो या फिर आग    लगा दो  ?

खाने को तो  कसमे खाई जाती हैं इमां के सौदे में भी तो
आखिर किस ईमान को तुम मुकम्मल   ईमान कहते हो ?

बे वजह  कि उलझनों में  उलझ के रहते हो  खुद यहा
और इसे धर्म के नाम पर दिया गया इम्तिहान कहते हो  ,

जो खुद ही खुदा है  और  जो भगवान है खुद ही
उसकी  रखवाली   में  आखिर क्यूँ खुद को परेशान कहते हो ?

सरहदों में बाँटना है तो सर उठा के देख लो ऊपर
और इसे बाँटो जिसे तुम आसमान कहते हो  ,

एक दिन कहा था आकर के भगवान ने मुझसे    ' ऐ राजीव' !
"  उसे रोटी -  कपडा दो जिसे तुम  भूखा-नंगा इन्सान कहते हो .

 बताओ प्रेम से " हिन्दू नही मुस्लिम नही बस   इन्सान ही हो तुम  "
तो उस के लिए तो  तुम्ही  खुदा हो और भगवान ही हो  तुम ....................