गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

सत्यमेव जयते ?

मारों सालों को, 
हाँ मारो सालों को, 

साहब हमारा कसूर क्या है? 

साला हमसे पूछता है कसूर? 
चल चार लगा इसके पिछवाड़े पर, 
रे हरामी साला.. 

चल मुर्गा बन, 
घर जायेगा,
वहाँ महामारी फैलायेगा, 

साहब हमें नहीं पता था कि, 
8 बजे जब बारह बजे की बात होगी, 
तो हमारे बारह बज जायेंगे, 

मालिक अब मत मारिये लाठी, 
बहुत दर्द होता है.. 
नहीं साहब , 
मारिये और दो चार लाठी .. 
कि हम मर जाएं, 
साला ए भूख है न, 
इससे मरने से अच्छा है, 
कि आपकी लाठी से मरें, 
ताकि मर के भी आपको सुकून दिला पाएँ, 
कि आप ने सरकार के आदेश का पालन किया, 
कर्तव्य निभाया, 

गाली भी दीजिये थोड़ा, 
कई दिन से गाली भी नहीं खाया, 
कमी महसूस हो रही थी, 
आज पुरा किया आपने, 

लेकिन मेरी भी सुनिये उसके बाद पिटियेगा फिर से, 
और हमरे पिटाई का
बीडीओ भी बना लीजियेगा सर, 
फेसबुक पर बहुत शेयर होगा सर, 
हम फिर मुर्गा बनेंगे, 
पक्का वादा है सर, 



लेकिन ये बताइये, 
हम कब गए थे परदेश, 
जहाँ ई वाली स्टैंडर्ड बीमारी पकडा हमको, 
हम लोग के तो कोई पास भी नहीं आता था सर,
त कोई छुता भी नहीं था, 
लेकिन मान लिए सर नहीं जायेंगे हम घर, 


वह बड़बड़ाता रहा, 
साहब हमारे पास तो जो जमीं था 
वो बेच के तो एजेंट को पैसा दिये, 
उ खा गया तो हम
चले आये आपके, 
दिल्ली, लुधियाना, मुंबई, 
का करें आप बताइये, 


8 बजे आके 12 बजे ही क्यूँ सर, 
उसके एक दो घंटा पहिले काहे नहीं सर, 
सर सुनिये न जो थाली बजी थी, 
हम भी थे सर उसमे, 
बहुत जोर से बजाया था हमने भी, 
लेकिन हमको पता नहीं था न सर, 
अब थाली बजाना ही नियति है मेरी, 

उसी दिन फोन किये थे, 
मालिक को पगार देने को, 
बोला कि जाओ जिसको मर्जी बोल दो, 
अब तो छुटी बाद ही देंगे, 
सर हम फिर घर से निकल के 
आप ही जैसे खाकी वाले के पास जा रहे थे, 
उ रास्ते में ही मिल गए, 
उ भी वैसे  ही पीटे थे सर, 
जैसे आप पीट रहे हैं, 

लेकिन तब दर्द कम हुआ था सर ! 
भूखे नहीं थे न सर, 
लेकिन खत्म हो गया, 

ई बताइये सर, 
ई जब आप लोग हमलोग का कॉलर पकड़ के, 
जब पीटते हैं तो आप को भी न हो जायेगा सर, 
और सर आप तो मुह नहीं न बांधे हैं सर, 

रे साला तुम हम से कानून हगता है रे, 
पुलिस को सिखायेगा, 
कानून, 
साले डाल देंगे जेल में सडोगे वहीं, 

साहब ले चलिए जल्दी
उहाँ खाना त मिलेगा न, 
साहब कोई भीख भी नहीं देता है, 
एक मीटर से दूर रहना है न साहब, 

हमको जेल ही ले चलिए, 
या फिर वहाँ जहाँ रैली हो रही हो, 
या वहाँ जहाँ नारा लगाना हो, 
उहाँ त खाना भी मिल जाता है, 
और दु सौ तीन सौ रूपया भी, 


सिपाही को जाने क्या सुझा, 
उठा , 
गाड़ी से अपना लंच बॉक्स लाके दे दिया, 
सुबह से वो भी भूखा था,
लेकिन जाने क्यूँ वह भूख भूल गया अपनी,

 
बात करते उसने फिर से पूछा साहब, 
जेल में खाना मिलेगा न ? 

तभी गाड़ी मे बैठा कोई चिल्लाया, 
रे साला, 
तुम इससे बतिया रहा है, 
मारो चार और इसके पिछवाड़े पर, 

सिपाही ने डण्डा उपर उठाया, 
हाथ काँप गया, 
डंडा गिर गया, 
आँख के कोर पर दो बूँद आ गयी थी, 
कांपते होठों ने कहा, 
क्या यही है लोकतंत्र  ??

और पुलिस की गाड़ी पर 
वह सवालिया निगाहों से देखने लगा, 
छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था, 
"सत्यमेव जयते"
सिपाही बोला क्या सच में ? 






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