शनिवार, 21 दिसंबर 2019

फलसफा

कुछ धूल सी उठी है,
कुछ रेत सा फिसला है,
कुछ गुम सा हुआ है ,
कैसा ये सिलसिला है !
खुद से मिलना होता है रोज,
खुद के रूह से फासला है ,
बकायदा बेखौफ सन्नाटे में,
एक फलसफा सा मिला है।

मै क्युँ दूँ साथ ?

मै क्युँ दूँ साथ
मुसलमानों का,
क्युँ वो बवाल काट रहे हैं ?
और फिर मै उनका भी साथ क्युँ दूँ ,
जो कल दलित,पीडित ,
व्यथित के नाम पर बवाल काट रहे थे,
नीरो अगर बाँसुरी बजाये तो,
तो मै आनन्द क्युँ ना लूँगा,
और हाँ उनका भी साथ क्युँ दूँ,
जो पिछ्ले दिनों पानीपत को ,
कुरुक्षेत्र बना चुके थे,
चिला रही थी औरतें,
बचाओ बचाओ,
वहीं जहाँ से शुरु हुआ था ,
बेटी बचाओ वाला अभियान ,
मै उनका भी साथ क्युँ दूँ,
जो कल एक पार्टी का झण्डा लेकर घूम रहे थे ,
और आज दुसरी पार्टी का,
और उनका भी साथ क्युँ दूँ ,
जिसने पण्डित बड़ा,
या बनिया ,
या फिर यादव या फिर राजपूत,
या फिर शूद्र ,
इस लड़ाई में हजारों बार आग लगायी,
और फिर वो जो ,
आरक्षण के नाम पर जो बवाल कटा ,
वो भुल कैसे जायें,
और उनका भी साथ क्युँ दें,
इसलिये हस्तिनापुर को,
जलने दे रहा हुँ मै,
जब युधिष्ठिर ने खुद लगाया है दांव तो
रक्तरंजित धरती खुद कह देगी ,
किसकी हुई जीत,
और फिर आ ही जायेंगी खुशियाँ लौट के ,
शान्ति की मौत जितनी भयावह होती है,
उससे ज्यादा
सन्नाटेवाली होती है,
मौत के बाद की शान्ति।
इसलिये हम क्युँ ना सुनें ,
नीरो की बजायी हुई तान
और क्युँ दे किसी का साथ ,
क्या इसलिये कि ,
कायम रहे कुरुक्षेत्र।
तुच्छ सा व्यक्ति हुँ ,
निमित मात्र हुँ,
राग द्वेष से मुक्त।
और नीरो की बंसी अब तेज बज रही है।
और मै अपने कान बंद कर लेना चाहता हुँ।