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रविवार, 7 जून 2020

तकलीफों की आह में,

तकलीफों की आह में,
शिकन की पनाह में ,
गुमनाम सा कभी ,
महसूस होता है,
ढूंढता हूँ कभी खुद को,
मुझ में,
या फिर मुझ को,
खुद में तलाशता हूँ !
बिखर रहा है कुछ,
समेट रहा सब कुछ,
लेकिन फिसल रहा है,
कुछ !
मानों रेत की मानिंद ,
भीड़ से डर लगता है,
सन्नाटा कौंधता है,
मानों मस्तिष्क ना हो,
कोई कथाकोविद हो,
कह रहा कुछ ,
और गढ़ रहा हो कुछ,
उलझनों की तारों में ,
तलाश कर रहा हो,
एक मंजिल इस नश्वर दुनिया से परे !



शनिवार, 17 मार्च 2012

क्या तुमने ऐसा अधम कुकृत्य किया होता ???


कल शहर के राह  पर मैंने भीड़ देखा था ,
जहाँ एक नवजात कन्या को उसकी माँ ने फेंका था ,
मै बेबस था चुपचाप था बहुत परेशान था ,
मै उस नवजात की माँ की ममता पे बहुत हैरान था  , 

मै कुछ नही कह सकता था उस भीड़ से , क्युं कि मै भी एक इंसान था ,
पर क्या उस कुछ देर पहले जन्मी बच्ची  का नही कोई भगवान था ?? 

क्या उस माँ की कोख ने उस माँ को नही धिक्कारा होगा  ?
क्या उस नवजात की चीख ने उस माँ को नही पुकारा होगा ? 

आखिर क्यूँ जननी काली  से कलंकिनी  बन जाती है ? 
जन्मती है कोख से और फिर क्यूँ कूड़े पे फेंक आती है ? 

गर है ये एक पाप , तो क्यूँ माँ करती है उस पाप को ?
क्या शर्म नही आती उस बच्ची के कलंक कंस रूपी के बाप को ? 

बिलखते हैं, चीखते हैं मांगते हैं रो-रो कर भगवान से ,
जो की दूर हैं एक भी संतान से , 

  उस नवजात को मारने  की वजह बढती हुई दहेज तो नही ?
 कुछ बिकी हुई जमीरों के लिए लकड़ियों की कुर्सी मेज तो नही ?
कुछ बिके हुए समाज के सोच की  नग्नता का धधकता तेज तो नही ?
 इस नवजात की मौत की वजह  किसी के हवस की शिकार सेज तो नही ? 

बस एक बात पूछता हूँ उस समाज से , उस माँ से ,और उस भगवान से
क्यूँ खेलते हों मूक  निर्जीव सी नन्ही सी जान से  ?? 

आखिर क्यूँ मानवता पे यूँ गिरी है ये गाज ?
जिस माँ ने फेंका था उस नवजात को, उसी माँ से पूछना चाहता हूँ मै  आज ..  

क्या तुमने ऐसा अधम कुकृत्य किया होता ?
अगर तुम्हारी माँ ने भी तुम्हे अपने कोख से निकाल फेंक दिया होता ???????