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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

"असुर" वेबसीरी़ज समीक्षा

सबसे पहले इस वेबसीरी़ज को असुर नाम क्यूँ दिया गया है ?  यह समझना जरूरी है। मृत्यु सिर्फ असुरों के ही आनंद का विषय वस्तु हो सकता है, देवों के नहीं। 
व्यक्ति का मनोविज्ञान ही उसे देव या दानव रूप प्रदान करता है, वह कौन सा रास्ता अख्तियार करता है यह उसी पर निर्भर करता है। 
सामान्य रूप से भारतीय पौराणिक कथाओं पर जब कोई कहानी कही जाती है ,तो उसमें तंत्र- मंत्र साधना आदि से कहानी को दिशा दी जाती है। 
इससे विपरीत यह एक बालक के "असुर"  रूप में परिवर्तन आधुनिक तकनीकी और विज्ञान के प्रयोग पर आधारित है। एक तरफ वह तंत्र-मंत्र ,पुराण  के सहारे स्वयम के मनोविज्ञान को असुरी प्रवृत्ति की तरफ मजबूती प्रदान करता है ,दूसरी तरफ वह मौत के खेल को तकनीकी के सहारे अंजाम देता है। 

कहानी है सत्य और असत्य के युद्ध की, 
और इसे देखते हुए आप जाने उन कितने पलों को जियेंगे जो आपको सत्य और असत्य के इस युद्ध में कभी सत्य को हारते देखते हैं और कई बार उसे जीतते.. साथ ही दिमाग आपको क्या सही और क्या गलत में भी कन्फ्यूज करता है। 

मनुष्य का मनोविज्ञान और मनुष्य के मस्तिष्क की क्षमताओं के मजबूती और इसका विज्ञान के साथ ताल मेल कितना भयावह भी हो सकता है ,यह इस कहानी का मुख्य पक्ष है। 

कल्कि अवतार की सम्भावना एक बालक जिसका नाम शुभ है, के मानसिक  उद्वेलन को किस तरह से प्रभावित  करती है और वह उसे धर्म,विज्ञान  और आधुनिक तकनीकी के सहारे मृत्यु को एक माध्यम बना के ईश्वर को आमंत्रण देता है यह इस कहानी का मुख्य प्लॉट है। 

यूँ समझा जाए कि यह कहानी विज्ञान और धर्म के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों को उजागर करता है! समस्या जिस रास्ते से उत्पन्न की जाती है उसका समाधान भी उसी रास्ते से मिलता है! 
धनंजय राजपूत और शुभ के इस मनोवृति की लड़ाई की कहानी है यह जिसमें दोनों को लगता है कि दोनोँ ही सच के साथ हैं! 
साथ ही कहानी  निखिल, और धनंजय राजपूत की टीम आदि के सहारे आगे बढ़ती है। 
कहानी बनारस के घाटों और FBI और CBI के दफ्तरों से शुरू होती है, और समानांतर चलती है ।
घाटों के सौंदर्य , पूजा पाठ और तन्त्र मंत्र और Sci-Fi दफ्तरों के बीच और मौत और उसके बाद पोस्टमार्टम रूम के बीच की बात चीत, मौत के तरीकों का विश्लेषण, हैकिंग के साथ जेल के बंद दीवारों के बीच सब कुछ अलग चलते हुए कब आप कहानी का हिस्सा बन के सोचने लगते हैं आप को पता ही नहीं चलता।
 संस्पेंस  का घेरा आपके इर्द गिर्द ऐसे चलता है, जो कहानी के खत्म होने तक आप को कई सारे प्रश्न देकर जाता है! 
कई बार आप स्वयम भी मौत की गुत्थी सुलझाने में दिमाग चलाने लगते हैं। 

परत दर परत किरदारों और उनके चरित्रों पर से उठता परदा ही इस कहानी की मजबूती है । 
सभी कलाकारों का अभिनय उम्दा दर्जे का है! जिसको जितना काम मिला है उसने बेहतरीन किया है, 
सिनेमेटोग्राफी, साउंड बेहतरीन , कई जगह डार्क नेस जो कहानी की माँग है उस पर बढ़िया काम किया है! 

क्यूँ देखें :- कुछ बहुत नया देखना चाहते हों तो जरूर देखें ! 

क्यूँ नहीं देखें :-  अगर मनोविज्ञान और धर्म के पक्ष ,गुण और अवगुणों के बीच विभेद नहीं कर पाएं तो नहीं  देखें! 

पांच घण्टे देख कर आप यह पाएंगे, कुछ अलग देखा है।