कुछ धूल सी उठी है,
कुछ रेत सा फिसला है,
कुछ गुम सा हुआ है ,
कैसा ये सिलसिला है !
खुद से मिलना होता है रोज,
खुद के रूह से फासला है ,
बकायदा बेखौफ सन्नाटे में,
एक फलसफा सा मिला है।
कुछ रेत सा फिसला है,
कुछ गुम सा हुआ है ,
कैसा ये सिलसिला है !
खुद से मिलना होता है रोज,
खुद के रूह से फासला है ,
बकायदा बेखौफ सन्नाटे में,
एक फलसफा सा मिला है।
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